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मेरी आत्मकहानी
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से भग हुआ था। निश्चच हुआ कि इस सबंध में एक पैम्पलेट छपवाया जाय। बाबू राधाकृष्णदास ने उसके नोट तैयार किये। मैंने पैम्पलेट अँगरेजी में लिखा और पंडित लक्ष्मीशंकर मिश्र ने उसका संशोधन और परिमार्जन किया। यह पैम्फलेट The Nagari Character नाम से सन् १८९६ में प्रकाशित किया गया और इसकी प्रतियाँ चागें और बाँटी गई। आनंद की है कि २७ जुलाई सन् १८९६ की गवर्नमेंट की आज्ञा नं० सी० में कहा गया कि गवर्नमेट ने रोमन अक्षरो के प्रचार का प्रस्ताव प्रस्वीकृत कर दिया है।

इस वर्ष के नवंबर मास में सर एंटोनी मैकडानेल साहब जो इस प्रदेश के लेफ्टिनेंट गवर्नर थे, काशी पधारे। सभा ने उनको एक अभिनंदन-पत्र देने का विचार कर उसके लिये आज्ञा माँगी। कोई उत्तर न मिला। जब सर एंटोनी साहब काशी पहुँच गए तो मैं नदेसर की कोठी में जहाँ वे ठहरे थे, बुलाया गया। वनारस के कमिश्नर के सिरिश्तेदार ने मुझसे कहा कि यदि तुम्हारी सभा अभिनंदन-पत्र देना चाहती है तो जाओ डेपुटेशन लेकर अभी आओ। मैंने कहा कि संध्या हो चली है। लोगों को इकट्ठा करने में समय लगेगा। यदि कल या परसों इसका प्रबंध हो सके तो हम लोग सहर्ष आकर अभिनंदन-पत्र दे सकते हैं। उन्होने कहा, यह नहीं हो सकता। मैं लौट आया और मुख्य मुख्य सभासदो से सब बातें कहीं। निश्चय हुआ कि अभिनदन-पत्र डाक से भेज दिया जाय और सब बातें लिख दी जायें। ऐसा ही किया गया।