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मैंने जिन भावनाओं से प्रेरित होकर इन कहानियों को लिखा है वे यथास्थान वर्णन की गई है, फिर भी सब लोगों को अधिकार है कि वे अपनी-अपनी रुचि के अनुसार उनका विवेचन करें। मैं तो इतना ही कहूँगा-
जिनकी होय भावना जैसी। मम सूरत देखें ते तैसी॥
काशी
६-१०-४१
निवेदक
श्यामसुंदरदास