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मेरी आत्मकहानी
 

अनुभव करती आई है। उसने कई वैज्ञानिक लेखों को अपनी पत्रिका मे छापा भी, पर सबसे बड़ी कठिनाई जो सामने आती थी वह वैज्ञानिक शब्दों के हिंदी-पर्यायो का न मिलना है। भिन्न-भिन्न लेखक अपने अपने विचार के अनुसार शब्द गढ़ते हैं, आगे चल कर इसका यह परिणाम होगा कि एक शब्द के लिये अनेक पर्याय हो जायँगे तब इस स्थिति को सँभालना कठिन हो जायगा और हिंदी के वैज्ञानिक साहित्य में जो गड़बड़ी होगी उससे हिंदी को भारी धक्का पहुॅचने की आशंका है। अतएव सभा ने एक वैज्ञानिक कोप तैयार करने का आयोजन किया। इस काम के लिये एक छोटी कमेटी बनाई गई जिसका सयोजक मैं चुना गया। यहाँ पर इसके पूर्व का कुछ इतिहास दे देना उचित होगा।

भारतवर्ष मे जातीय शिक्षा का प्रश्न भारत-गवर्नमेंट के सामने सदा से रहा है। सन् १७८१ में कलकत्ते में कलकत्ता-मदरसा की और उसके कुछ काल उपरात काशी में सस्कृत-कालेज की स्थापना इस उद्देश्य से की गई जिसमें न्याय-विभाग के लिये हिंदू और मुसलमान न्याय-पद्धति को जाननेवाले उपयुक्त व्यक्ति मिल सके। इसके कुछ वर्षों पीछे इस बात की चर्चा चली कि शिक्षा का माध्यम अँगरेजी हो या देश-भाषाएँ। सन् १८३५ की ७ मार्च को लार्ड विलियम वेनटिंक ने यह आज्ञा घोषित की कि शिक्षा का माध्यम अँगरेजी होगी और पश्चिमीय विद्याओं को प्रमख खान दिया जायगा इसके अनंतर सन् १८५४ में लाई हालीफैलस ने कोर्ट आफ डाइरेक्टर्स की ओर से उन सिद्धातों को स्पष्ट किया जिसके