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मेरी आत्मकहानी
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कार्यों का श्रीगणेश किया जिनका वर्णन मैं यहाँ करना चाहता हूॅ। इनमें मुख्य मुख्य बाते ये है―हिंदी-लेख और लिपि-प्रणाली पर विचार वैज्ञानिक कोष, रामचरितमानस सरस्वती और हस्तलिखित हिंदी-पुस्तको की खोज। इन सब कामो का श्रीगणेश १९०० से पहले ही हो चुका था और इनका स्पष्ट रूप सन् १९०० मे प्रकट हुआ। अब मैं पुनः सभा का मंत्री हो गया था। सन् १९०० के पहले सभा ने इंडियन प्रेस के लिये भाषा-पत्रबोध, भाषा-सार-संग्रह भाग १ और २ तथा खेती-विद्या की पहली पुस्तक तैयार की। यहाँ एक बात का उल्लेख कर देना कदाचित् अनुचित न होगा। जब भाषा-सार-संग्रह तैयार हुआ तब मेरी बड़ी उत्कट कामना थी कि इस पुस्तक पर और लोगों के साथ मेरा भी नाम रहे। पर इंडियन प्रेस के स्वामी ने इसे स्वीकार न किया। पुस्तक पर किसी का नाम न दिया गया। लेखक के स्थान पर केवल ‘सभा’ के पाँच सभासदों-द्वारा-रचित’ लिखा गया। इसके बहुत वर्षों पीछे वह समय भी आया जब प्रकाशकों ने केवल मेरा नाम छापने की अनुमति देने के लिये मुझे बहुत कुछ लालच दिया। यह समय का प्रभाव है कि जब किसी वस्तु के प्राप्त करने की लालसा होती है तब वह नहीं प्राप्त होती, पर जब लालसा नष्ट हो जाती है तब वह सहसा प्राप्त हो जाती है।

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हिंदी-वैज्ञानिक कोष

सभा की वार्षिक रिपोर्टों के देखने से यह विदित होगा कि सभा आरंभ से ही वैज्ञानिक ग्रंथों के हिंदी मे बनने की आवश्यकता का