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मेरी आत्मकहानी
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(५)

हिंदी की लेख तथा लिपि-प्रणाली

सभा ने सन् १८९८ में एक उप-समिति इसलिये बनाई थी कि वह हिंदी को लेख तथा लिपि-प्रणाली के संबंधध में अनेक प्रश्नो पर विचार कर अपनी सम्मति दे। इसमे ग्यारह सभासद् थे और इसका सयोजक मैं नियत किया गया था। समिति ने आठ प्रश्नो को छपवाकर अनेक विद्वानों के पास सम्मति के लिये भेजा। इस पर ५९ महाशयों ने अपनी सम्मति दी। प्रश्न ये थे―

(१) हिंदी किस प्रणाली की लिखी जानी चाहिए अर्थात सस्कृत-मिश्रित या ठेठ हिंदी या फारसी-मिश्रित और यदि भिन्न-भिन्न प्रकार की हिंदी होनी उचित है तो किन-किन विषयो के लिये कैसी भाषा उपयुक्त होगी?

(२) विभक्ति अलग लिखनी चाहिए या एक साथ मिलाकर तथा संज्ञा और सर्वनाम में एक ही नियम होना चाहिए या अलग-अलग और समस्यमान शब्दो को मिलाकर लिखना चाहिए या अलग?

(३) ‘हुआ', ‘गया' आदि के स्त्री-लिंग, पुंलिग, एकवचन, बहुवचन मे हुआ, हुवा, हुए, हुवे, हुई, गया, गए, गई, गयी आदि मे से क्या लिखना चाहिए और किस नियम से?

(४) संस्कृत के जो शब्द विगड़ कर भाषा में प्रचलित हो गए हैं उन्हें भाषा मे शुद्ध करके सस्कृत-शब्द लिखना चाहिए या अपभ्रंस? जैसे―