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पृष्ठ:मेरी आत्मकहानी.djvu/७७

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७० मेरी पालकहानी इन शब्दो के चारए पर ध्यान दिया जाय तो यह देना पड़ेगा कि अधिश शन्दों का जो उचारण मुख्य मापा में था उसने हिंदी में इन बदल गया है जैस ल्यानहने का लालटन और लन ग लंप। बहुत-से शबासे भी हैं जिनके मान्य में क्व भी भेटनी पड़ा अथवा नाम मात्र को हुआ है जमे चम्म रेल यादि । डनी प्रकार से फारसी और अरवी के बहुत से शद्ध हिंदी में मिल गए है जिनमें से कुछ न तो रूप बदल गया है और कुछ ज्यों के त्यो वर्तमान हैं। इसलिये जो लोग यह रखते हैं रिहिंदी में अन्धी फारसी के स्निी शब्द का प्रयोग न हो उन्हें इन धन पर ध्यान देना चाहिए किन्यों अरवी फारसी पर ही यह रोक लगाई जाय। न्यों न यह नियम कर दिया जाय कि जितने शब्द नरसव के अतिरिक्त क्सिी दूनर्ग भाषा से आ गम हैं वे सब निकाल दिए जायें ? हन लोगों का यह मत है शितो शब्द अरवी फारमी या अन्य मापात्रों के हिदीवन् गए हैं तथा जिनका पूर्ण प्रचार है वे हिंदी के शशब्द माने नावें और उनका प्रयोग दूषित न नमन जाय । इसमें यह 'वात न स्मझी जाय कि जितनी पुत्त नाग घरों में एपी हैं वे सब रियो माषा की हैं, क्योंकि आज-कल बहुत सी ऐसी पुस्तकें देखने में घाती हैं जिनके प्रदर तो नागरी हैं पर मापा के । "हिंदी-लेखों और हितपियों में एक दल ऐसा है जो इस मत स पोषक है कि हिंदी में हिंदी के शब्द रहे. संस्कृत के शब्दों का प्रयोग नहो । यह सम्मति युक्ति-संगत नहीं जान पड़ती। दिदी कावन्म संस्कृत से हुआ है. इसलिये वह उतनी माता के स्थान