सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:मेरी आत्मकहानी.djvu/७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मेरी मामपानी हौ, भविष्यत में विदेशी भाषा नान गरी मना रग्ने समय इस यात पर पूर्णतया पान चा वार रिन पिगी नहीं का हिंदी में प्रयोग ना जिन जिय दिनी या मगन में और यही अर्थवाचक शब्द हैं। मय पनी पर ध्यान करान लोगों मिद्धात यह कि हिदी लिग्न में जीना धामी 'ग्यो तया और विशी भापात्रा नमानीपा प्रगंगन दिया गय जिनके स्थान पर हिंदी फे रवा माल के मुगम र प्रालिन मह उपस्थित हैं पर विरंगी भाराना मिशगुनया प्रचलित होगा हैं और जिन स्थान पर हिंदी में मत ना श्रम जिनके स्थान पर मन्थन के गद गरी में स्टार्य पर से सभावना है, उनका प्रयोग ना चाहिए। मागश या मिस पहला स्थान शुद्ध हिदी फ गदा स.पी. सकन नगम और प्रचलित शब्दों की सनक पी. फार जानि विदेशी भापानी के नाधारण और प्रचलित शब्दों को और सबसे पी संस्कृत के अप्रचलित शब्दों को स्थान दिया जाय । फारसी आदि विदेशी भाषाओं के कठिन शब्दों स प्रयोग कदापि न हो। "मिन भिन्न विपयो तया प्रथमग के निमिन भिन्न-भिन्न प्रणाली आवश्यक है। जो प्रथ या लेस इस प्रयोजन में लिख जाय कि सर्वसाधारण उन्हें समझ न उनी भाषा ऐनी सग्ल सेनी चाहिए कि मर्व-बोधगम्य हो। न तक सीवे माये मरल शब्दों का प्रयोग हो, फारसी और अग्बी के अप्रचलित शब्दों का प्रचार न हो। उच्च श्रेणी के पाठकों के लिये जो ग्रंथ लिखे आयें