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मेरी आत्मकहानी
 

हुए हैं। इस वर्ष में सन १६०४ की लिखी हुई रामायण की एक प्रति का पता लगा। इसका बालकांड इस सन् का लिखा है, शेष कांडों की लिपि आधुनिक है। राजापुर के प्रसिद्ध अयोध्याकांड की भी नोटिस इसी वर्ष में की गई। इस वर्ष में चंद के रासो की दस प्रतियों का पता लगा जिससे यह पता चला कि रासो के नाम से कई नवीन ग्रंथों का निर्माण हुआ है, जिनमें से एक ग्रंथ परमालरासो के नाम से नागरी-प्रचारिणी सभा ने प्रकाशित किया है। कृष्णगढ़ के महाराज सावंतसिंह, उपनाम नागरीदास के २० ग्रंथो के नोटिस तैयार किए गए तथा सदल मिश्र के नासिकेतोपाख्यान का भी इसी वर्ष में पहले-पहल पता लगा। जटमल की गोरा-बादल की कथा की भी इसी वर्ष में नोटिस की-गई। कृष्णगढ़ के महाराज राजसिंह की पुत्री सुंदर कुँअरि के १० ग्रंथो का विवरण भी इस वर्ष में तैयार हुआ। यह सुंदर कुँअरि नागरीदास की बहन थीं। विशेष विवरण रिपोर्ट से मिलेगा। यह रिपोर्ट सन् १९०४ में प्रकाशित हुई।

सन् १९०२ में जोधपुर के राजकीय पुस्तकालय में रक्षित ग्रंथों की नोटिसें की गई तथा मिर्जापुर और गोरखपुर में हस्तलिखित ग्रंथों की खोज की गई। सब मिलाकर १२५ पुस्तकों की जांच की गई। इनमे से ११५ ग्रंथो के ७३ रचयिताओं का पता चला जिनमें से १ बारहवीं १ तेरहवीं, १ चौदहवीं, २ पंद्रहवीं, ६ सोलहवीं, १५ सत्रहवीं, १६ अट्ठारहवीं और १३ उन्नीसवीं शताब्दी के हैं। १८ कवियों के समय और १० ग्रंथकर्ताओं के नाम का पता न लग सका। परिशिष्टों में भी २१० ग्रंथों का उल्लेख है। अधिकांश ग्रंथ