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मेरी आत्मकहानी
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वहाँ जो कुछ मिला वह सब पहली रिपोर्ट में लिखा है। यह तो संभव नहीं है कि इस स्थान पर इस कार्य का सविस्तर वर्णन हो सके, पर संक्षेप में दिग्दर्शन-मात्र कराने का मैं उद्योग करूँगा। आरंभ प्रतिवर्ष रिपोर्ट लिखी जाती थी पर १९०६ से प्रति तीसरे वर्ष रिपोर्ट देने का नियम निश्चित हुआ। मेरी लिखी सात रिपोर्ट हैं जिनमे ६ तो वार्षिक और एक त्रैवार्षिक है।

सन् १९०० में १६९ पुस्तकों के विवरण तैयार किए गए। इनमें १२ ग्रंथों को छोड़कर, जिनके रचयिताओ का पता न चल सका, शेष १५७ ग्रंथ ६० विद्वानों के रचे हुए हैं। इन ग्रंथकारों में से १ बारहवी, २ चौदहवी, १ पंद्रहवी, २२ सोलहवी, १८ सत्रहवीं, १८ अट्ठारहवीं और १६ उन्नीसवी शताब्दी में हुए। इन ग्रंथो मे से अधिकांश सत्रहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी के लिखे हुए हैं, केवल एक ग्रंथ १६वीं शताब्दी का लिखा हुआ मिला। इस रिपोर्ट में तुलसीकृत रामचरित-मानस, कुतबन की मृगावती, जायसी की पदमावत, चंद के पृथ्वीराजरासो तथा नरपति नाल्ह के बीसलदेव-रासो का विशेष रूप से विवेचन किया गया है। यह रिपोर्ट सन् १९०३ में प्रकाशित हुई।

सन् १९०१ की रिपोर्ट में १२९ ग्रंथो की नोटिसें हैं जिनके रचयिता ७३ महाशय हैं। इनमें से एक १२वीं, १ चौदहवीं, १४ सोलहवीं, १२ सत्रहवीं, १९ अट्ठारहवीं और १५ उन्नीसवीं शताब्दी के हैं। १३ ग्रंथकारो के समय और पांच ग्रंथो के कर्ताओं के नाम का पता न लग सका। अधिकांश ग्रंथ १९वीं शताब्दी के लिखे