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मेरी आत्मकहानी
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बुंदेलखंड़ के कवियों मे केशवदास, व्यास, मेघराज, अक्षर अनन्य, गोरेलाल, मनचित, हरिकेश, हंसराज, रूपसाहि, रामकृष्ण, मान या खुमान, प्रतापसाहि, पद्माकर, नवलसिंह, भोज और हरिदास का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है। बाहर के कवियों में से निम्नलिखित कवि मुसलमान बादशाहों के आश्रित थे-

सुंदर, श्रीपत भट्ट, शिरोमणि मिश्र, पुहकर और वान कवि। यह रिपोर्ट सन् १९१२ मे प्रकाशित हुई।

इस प्रकार हिंदी-पुस्तकों की खोज का काम आरंभ करके मैंने ९ वर्षों तक उसे चलाया और उस कार्य की सात रिपोर्टे लिखी। सन् १९०८ के बाद पं० श्यामविहारी मिश्र इस कार्य के निरीक्षक हुए, उनके छोड़ने पर पंडित शुकदेवविहारी ने कुछ काल तक इसका निरीक्षण किया। तब डॉक्टर हीरालाल ने इस काम का भार लिया। अब डॉक्टर पीतांबरदत्त बड़थ्वाल इसकी देख-रेख करते हैं। मेरा सदा से यह ध्येय रहा है कि काम को चलाकर उसे दूसरों को सौंप देना, जिसमे कार्य करनेवालों की संख्या बढ़ती जाय और कभी किसी दुर्घटना के कारण रुक न जाय।

इस खोज के काम से हिंदी-साहित्य को कितना लाभ पहुँचा है और कवियों के समय आदि के निर्णय में कितना महत्त्वपूर्ण अनुसंधान हुआ है इसके दो-एक उदाहरण मैं देना चाहता हूँ।

(२) भूपतिकृत दशमस्कंध भागवत का निर्माणकाल सन् १९०२ की रिपोर्ट में संवत् १३४४ दिया गया था, परंतु अग्रलिखित कारणों से १७४४ मानना ठीक जान पड़ता है।