पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/१०३

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एतिहासिक कहानिय 'यह बात? 'यह भाट का वचन है महाराज।' रानी ने कहा-महाराज मेरी जीभ काटने या विष-पान करने की प्राज्ञ दे सकते हैं। 'परन्तु उपाश्रय जाने में क्या है ?' 'दहां मैं नहीं जाऊंगी, नहीं जाऊंगी।' जयदेव ने कहा-महाराज, कुलधर्म त्यागने से कल्याण नहीं होगा। मैंने महाराज सिद्धराज जयसिंह की भी सेवा की है और आपका भी शुभचिन्तक हूँ । मैं मूर्य को साक्षी देकर यह वचन कहता हूं कि भाट का वचन राजा के वचन से ऊपर है महाराज । जयदेव तेजी से वहां से चल दिया। हवा में उसकी सफेद दाढ़ी फहरा रही थी। वह सीधा राजा के भाई अजयपाल के पास गया और कहा-महाराज ! भाट प्रापका शरणागत है। मैंने सीसोदिनी को वचन दिया है। प्रव उस वचत, धर्म तथा सीसोदिनी का प्राण तीनों की रक्षा के लिए अपनी तलवार मुझे दीजिए। अजयपाल ने तलवार नंगी करके कहा-यह गुजरात की प्रतिष्ठा का प्रश्न है, यह तलवार उसकी रक्षक है। जयदेव ने प्रजयपाल की विरद गाई। अजयपाल और जयदेव ने परामर्श करके यह निर्णय किया कि सीसोदिनी रानी को महल से निकालकर भाटों की संरक्षता मे मेदपाट पहुंचा दिया जाए। अजयपाल की सहायता से रानी को महल से बाहर निकाल लिया गया। और जयदेव के भाई-बन्द २०० भाट रानी के डोले को घेरकर तारों की छांह में पाटन से चल दिए । भागे-आगे सांडनी पर सवार जयदेव भाट दो तलवारें बाधे चला। उसके पीछे उसका बेटा घोड़े पर तलवार, कटारी, जमधर तेगा बांध- कर। और उसके पीछे कुछ पैदल, कुछ सवार भाट । किसीके हाथ में तलवार, केसीके हाथ में लाठी 1 कोई धड़ेदम निहत्था । राजा ने सुना तो क्रोध से आगबबूला हो गया । वह स्वयं क्रोधोन्मत्त हो माटो को और उस ढीठ क्षत्रियबाला को अपनी अवज्ञा का दण्ड देने गुर्जर सैन्य देकर पीछे दौड़ चला। अभी दस कोस का मैदान भी न पार हो पाया था कि गुर्जर न्य ने रानी के डोले को धर दबाया। सारे भाट सिमटकर मरमें मारने को