पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/१०५

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१०२ एतिहासिक कहानिया 'महाराज महल पधारे। मैं सीसोदिनी रानी को लेकर पाटन आता हूं। कुमारपाल विषण्णवदन पीछे-पीछे लौट गया । और भाटों ने सीसोदिनी का शरीर कन्धों पर उठा लिया। वे पाटन लौटे। पाटन के अंचल में महाचिता चुनी गई। भाट सब इस काम में जुट गए। जयदेव ने कहा-~-जहां जितना चन्दन मिले उठा लायो । जितना दूकानों में हो वह सव, जितना मकान-महल में जहां लगा हो वह सव । राजा की बारहदरी चन्दन के खम्भों पर थी। भाटों ने वारह दरी ढहाकर खम्भे उखाड़ लिए, चन्दन का पहाड़ लगा, उस पर भी कपूर, कस्तूरी, कुकुम की बरसात वरसने लगी। सारा पाटन वहीं पा जुटा, सभी के हाथों में श्रद्धा के फूल थे। सभी की आंखों से गंगा- जमुना की धार बह रही थी। राजा ने भाटों को मनमानी करने से नहीं रोका। चिता सज गई। वह एक छोटे से पर्वत के समान थी। चिता में रानी का शरीर रखकर जयदेव ने उसकी तीन परिक्रमा की और फिर आग लगा दी। देखते ही देखते ज्वाला का समुद्र लहराने लगा। बूढ़े जयदेव ने पुकार लगाई- 'फट भूडा फट् पाखिया, तै लोधी अमारी लाज ! तारू जाशे बरसे राज, मौत कमोते वौधियां । फिर उसने गर्दन उठाकर चारों ओर देखा । नरमुण्ड ही नरमुण्ड नजर श्रा रहे थे। सने बांगल गाई- 'कौन भाट के वचन की आन मानता है. वह मेरे पीछे पाए।' और उछल- कर चिता में कूद पड़ा। उसके पीछे उसका जवान बेटा, और उसके पीछे एक के बाद दूसरे उसके दो सौ भाई-वन्द भाट। देखते ही देखते भाट के देश के दो सौ भाई-बन्द सीसोदिनी रानी के साथ उसी एक चिता पर जलकर खाक हो गए। एक चीख, एक प्राह भी किसीके मुंह से नहीं निकली।