पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/१०७

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१०४ ऐतिहासिक कहानियां हरण किया। मालव के यशोवर्मा को मारकर उसकी खाल से अपनी तलवार की म्यान मढ़ी। सरस्वती-तीर पर सिद्धपुर बसाया, रुद्रमहालय की स्थापना की । परन्तु जब मरे तव वे निस्सन्तान थे। उनके मरने पर उनके भाई त्रिभुवनपाल के छोटे कुमार कुमारपाल गद्दी पर बैठे। जिस समय कुमारपाल गद्दी पर बैठे उस समय उनकी उम्र पचास साल को पार कर रही थी। अपने जीवन के पचास साल उन्होने दर-दर मारे फिरने में विताए । उन्होंने बड़े दुःख उठाए। सिद्धराज उनसे खुश थे। और जब उन्होंने यह देखा कि यह मेरा उत्तराधिकारी होगा तव वे उनकी जान के ग्राहक हो गए थे। उन्हे मरवा डालने के लिए सिद्धराज ने बड़े-बड़े प्रयत्न किए । प्राणों के भय से उन्हें देश- विदेश भागना पड़ा । परन्तु अन्त में गुजरात की गौरवपूर्ण गद्दी मिली उन्हीको । कुमारपाल भी बड़े तेजस्वी थे। उनका अहंभाव भी कुछ साधारण न था। उन्होंने वीस वर्ष गुजरात की गद्दी को सुशोभित किया और अन्त में ८० वर्ष की आयु में घृणित कुष्ठ रोग में घुल-घुलकर मरे । गद्दी पर बैठने पर भी उन्हे बडे-बड़े विरोधों का सामना करना पड़ा। उन्होंने मालवा के राजा वल्लाल और कोंकण के राजा मल्लिकार्जुन को युद्ध में हराया । अपने बहनोई का अपने हाथ से वध किया। विवेरा के राजा को एक अनुरोधपत्र लिखकर कुमारपाल ने कुछ रेशमी दुपट्टों की मांग की थी। राजा ने इसपर कुमारपाल की हंसी उड़ाई। इसीपर कुमारपाल ने सात सौ सामन्त और तीस हजार सेना देकर मालव के राजकुमार बाहड़ को उसपर भेजा। उसने राजा को मार राजधानी को जला- कर छारा कर दिया, और एक लाख रेशमी दुपट्टे तथा सात सौ दुपट्टे बुनने- वाले कारीगर पाखारों को लाकर कुमारपाल की सेवा में उपस्थित किया । उसने मेदपाट, मेवाड़, अवन्ति, मालव और अर्बुद के राजाओं को जय किया । उसके राज्य की सीमाएं उत्तर में तुर्क राज्य से मिली हुई, पूर्व में गंगा तक, दक्षिण मे विन्ध्याचल और पश्चिम में सिन्ध नदी तक फैल गई थीं। उसने अनेक नन्द- महल बनवाए, अनेक देवालयों का जीर्णोद्धार किया। उसीकी छत्र-छाया मे उसके कुलगुरु जैन यति कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य ने अमर साहित्य रचा। वास्तव में कुमारपाल का काल सोलंकियो का प्रताप-काल था। परन्तु सबसे विचित्र और अद्भुत जो एक घटना इस बड़े राजा के जीवन मे घटी, यह कहानी उसीसे सम्बन्धित है । तब तक यहां मुस्लिम राज्य की