पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/११५

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ऐतिहासिक कहानिया त्यो कायम रह सकें। हिमालय की रमणीय घाटियों के प्रति उनका मोह बहुत था और वे देहरादून, कुमायू, गढ़वाल के इलाकों पर अपने दांत गड़ाए हुए थे। परन्तु उन दिनो ये सब जिले नेपाल के स्वाधीन साम्राज्य के अन्तर्गत थे। अंग्रेज़ इससे कुछ पूर्व ही लाहौर के महाराज रणजीतसिंह को भड़काकर नेपाल से लड़ा छुके थे। पर वीर नेपालियों ने प्राक्रान्ताओं के अच्छी तरह दांत खट्ट किए थे। अब यह स्पष्ट था कि भारत के इस मनोरम अंचल में अंग्रेज यदि अपने उपनि- वेश स्थापित करना चाहते हैं, तो उन्हें खुल्लम-खुल्ला नेपाल से लोहा लेना होगा। इस समय सारन और गोरखपुर के जिलों में नेपाल की सरहदें मिलती थीं। और वहां पर कुछ भूमि कम्पनी और नेपाल की विवादग्रस्त थी। जिसके सम्बन्ध में कभी-कभी छोटे-छोटे उपद्रव होते ही रहते थे। ऐसे ही एक विवाद का बहाना उठाकर अंग्रेजों ने नेपाल सरकार से युद्ध की घोषणा कर दी। नेपालियों की बीर जाति ने अब तक न सो पराजय का कभी सामना किया था, न पराधीनता का । यद्यपि उसकी शक्तियों सीमित थीं । परन्तु उसने अंग्रेजों से लोहा लेने में सनिक भी हिचक न दिखाई। अपरिसीम लूट-खसोट वावजूद भी इस समय भारत में कम्पनी की आर्थिक स्थिति इतनी नाजुक थी कि उन दिनों कम्पनी की हुण्डियां बाजार में बारह फीसदी बट्टे पर बिकती थीं। परन्तु अंग्रेज ऐसे अवसरों के लिए अनेक हथकण्डे हाथ में रखते थे। उन्होंने अवध के नवाब गाजीउद्दीन हैदर की गर्दन दबोचकर ढाई करोड़ रुपया कर्ज ले लिया और नेपाल से युद्ध की विस्तृत योजना बनाकर युद्ध छेड़ दिया। इस समय नेपाल का राज्य कम्पनी के राज्य से बहुत छोटा था। दोनों राज्यों के बीच पंजाब में सतलज से लेकर बिहार में कोसी नदी तक लगभग ६०० मील लम्बी सरहद थी। अंग्रेजों ने इस सरसद पर पांघ मोर्चे बांये और पांचों स्थानों से नेपाल पर आक्रमण करने का प्रबन्ध कर लिया। एक मोर्चा लुधियाने में कर्नल प्राक्टरलोनी के अधीन था। दूसरा मेजर जनरल जिलेप्सी के अधीन मेरठ में था। तीसरा मेजर जनरल वुड के अधीन बनारस और गोरखपुर में था। चौथा मुर्शिदाबाद और पांचवां कोसी नदी के उस पार पूनिया की सरहद और सिकिम राज्य के सिर पर था। इन सब मोचों पर अंग्रेज