पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/११६

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लगा दुर्ग परकार की तीस हजार सेना मय उत्तम तोपखाने के जमा की गई थी, जि. शामना करने के लिए नेपाल दरवार मुश्किल से बारह हजार सेना जुटा गा। उसके पास न काफी धन था, न उत्तम हथियार। और कूटनीति में वे अंग्रेजों के मुकाबिले विल्कुल ही कोरे थे। मेजर जरनल जिलेप्सी ने सबसे पहले नैपाल-सीमा का उलंघन कर देह क्षेत्र में प्रवेश किया। नाहन और देहरादून दोनों उस समय नेपाल रा. अधीन थे । नाहन का राजा अमरसिंह थापा था, जो नेपाल-दरबार का fi.. सेनापति था। अमरसिंह ने अपने भतीजे बलभद्रसिंह को केवल छह सौ गोमा देकर जिलेप्सी के प्रदरोध को भेजा। बलभद्रसिंह ने बड़ी फुर्ती से देहरादून साढ़े तीन मील दूर नालापानी की सबसे ऊंची पहाड़ी पर एक छोटा सा अन या किला खड़ा किया। यह किला बड़े-बड़े अनगढ़ कुदरती पत्थरों और मनी लकड़ियों की सहायता से रातोंरात खडा किया गया था। हकीकत में क्या था, एक अधूरी अनगढ़ चहारदीवारी थी। परन्तु वलभद्र ने उसे कि । रूप दिया, उसपर मजबूत फाटक चढ़ाया और उसपर नेपाली झण्डा कर उसका नाम कलगा दुर्ग रख दिया। अभी वलभद्र के वीर गोरखा इन अनगढ पत्थरों के ढोकों को एक . रख ही रहे थे कि जिप्लेसी देहरादून पर आध मका। उसने इस अद्भुत है। बात सुनी और हंसकर कर्नल मावी की अधीनता में अपनी सेना को किर पर आक्रमण करने की प्राज्ञा दे दी। जिप्लेसी की सेना में एक हजार गोरी और ढाई हजार देसी पैदल सेना थी। परन्तु वलभद्र के इस किले में दम केवल तीन सौ जवान और इतनी ही स्त्रियां और बच्चे थे। उसने उन मनी ? मोर्चे पर तैनात कर दिया। मावी ने देहरादून पहुंचकर उस अधकचरे दुर्ग को घेर लिया और wit तोपखाना उसके सामने जमा दिया । फिर उसने रात को बलभद्र के नाम द्वारा सन्देश भेजा कि किले को अंग्रेजों के हवाले कर दो। बलभद्रसिंह सामने ही पत्र को फाड कर फेंक दिया और उसी दूत की जबानी कन्नाला कि अंग्रेजो के स्वागत के लिए यहां नैपाली गोरखों की खुखरियां तैयार सन्देश पाकर मावी ने रातोंरात अपनी सेना नालापानी की नदी फैला दी और किले के चारों ओर से तोपों की मार प्रारम्भ कर दी। १२५