पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/११७

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११२ एतिहासिक कहानिय जवाब में किले के भीतर से गोलियों की बोछारें आने लगीं। तोपों के गोलों का जवाव वन्दुक की गोलियों से देना कोई वास्तविक लड़ाई न थी। और अग्रेज उनपर हंस रहे थे। परन्तु शीघ्र ही उन्हें पता लग गया कि नेपालियों के जौहर साधारण नहीं है । रात-दिन सात दिन तक गोलाबारी चलती रही, परन्तु कलगा दुर्ग अजेय खड़ा रहा। जनरल जिलेप्सी इस समय सहारनपुर में पड़ाव डाले उत्कण्ठा से देहरादून की घाटियों की ओर ताक रहा था। जब उसे अंग्रेजी सेना के प्रयत्नों की विफलता के समाचार मिले, वह गुस्से से लाल हो गया और अपनी सुरक्षित सैन्य को ले नालापानी जा धमका। सारी स्थिति को देखने-समझने और आव- श्यक व्यवस्था करने में उसे तीन दिन लग गए। उसने सेना के चार भाग किए। एक ओर की पल्टन कर्नल कारपेन्टर की अधीनता में आगे बढ़ी । दूसरी कप्तान फास्ट की कमान में, तीसरी मेजर केली की और चौथी कप्तान कैम्पवैल की कमान में। इस प्रकार अंग्रेजों ने एकबारगी ही चारों ओर से दुर्ग पर आक्रमण कर दिया। कलंगा दुर्ग पर बड़ाधड़ गोले बरस रहे थे और दुर्ग के भीतर से बंदूकें तोपों का दनादन जबाब दे रही थीं। अंग्रेजी सेना का जो योद्धा दुर्ग की दीवार या द्वार के निकट पहुंचने की हिमाकत करता था, वही ढेर हो जाता था । वापस लौटता न था। इस समय नैनाली स्त्रियां भी अपने बच्चों को पीठ पर बांधकर बन्दूकें दाग रही थीं। अनेक बार अंग्रेजी सेना ने दुर्ग की दीवार तक पहुंचने का प्रयत्न किया, पर हर बार उन्हें निराश होना पडा । अनगिनत अंग्नेज सिपाहियों और अफसरों को गोरखा गोलियों का शिकार होकर वहीं ढेर होना पड़ा। बार-बार की हार और विफलता से चिढ़कर जनरल जिलेप्सी स्वयं तीन कम्पनियां गोरे सिपाहियों की साथ लेकर दुर्ग के फाटक की ओर बढ़ा। परन्तु दुर्ग के ऊपर जो गोलियों और पत्थरों की बौछारें पड़ी तो गोरी पल्टन भाग खडी हुई 1 गुस्से और खीझ में भरा हुआ जिलेप्सी अपनी नंगी तलवार हवा में बुमाता हुआ दुर्ग के फाटक तक बढ़ता चला गया। जब वह फाटक से केवल नीस गज के अन्तर पर था कि एक गोली उसकी छाती को पार कर गई और ह वहीं मरकर ढेर हो गया। गोरखों के पास केवल एक ही छोटी सी तोप थी। वह उन्होंने फाटक पर