पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/१४६

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नवाब ननकू भर हुआ है सूरज छिपे ; और आपके लिए आधी रात हो गई, चीखते-चीखते गला फट गया । मुहल्ला-भर सिर पर उठा डाला।' वड़ा गुस्सा आया उस नवाब के बच्चे पर 1 जी मे पाया, कच्चा ही चबा जाऊं । परन्तु जब्त करके कहा-कहिए नवाव साहब, इस वक्त कैसे ? 'अजी, दरवाजा तो खोलिए, या गली में खड़े ही खड़े राग अलापूं।' मन ही मन दाद-पंच खाता नीचे उतरा और कुण्डी खोली। नवाब साहब चुपचाप पीछे-पीछे जीना चढ़कर अपर पाए ; आते ही नसनद पर देतकल्लुझी से उठग गए। कहने लगे-खुदा की मार इस सरदो पर । हड्डियां सक लण्डी पड़ गई ! मगर उस्ताद, खूब मजे में आप मीठी नींद ले रहे थे। मैंने कहा-~-आपके मारे कोई सोने पाए तब तो ! कहिए, इस वक्त कैसे तकलीफ की? नवाब साहब ने बेतकल्लुफी से हंसकर कहा-~~यों ही, बहुत दिन से भाभी माहिवा के हाथ का पान नहीं खाया था, तोचा-पान भी खा आऊं और सलाम भी करता पाऊं। गुस्सा तो इतना पा रहा था कि मर्दूद को धकेल दूं नीचे ! मगर मैंने गुस्सा पीकर कहा-पूरे नामाकूल हो तुम। कल इतवार था। कल यह सलाम की रस्म पूरी नहीं कर सकते थे, जो इस वक्त मेरे पाराम में खलल डाला? नवाब साहब खिलखिलाकर हंस पड़े। जेब से सिगरेट का बक्स और दिया- सलाई निकालकर एक होठों में दबाई, दूसरी मेरी ओर बढ़ाते हुए कहा-खैर, सिगरेट तो पिनो और गुस्सा थूक दो। हां, चालीस रुपए मेरे हवाले करो और इसे रक्खो संभालकर। उन्होंने बगल से एक पोटली निकालकर मेरे आगे सरका ने। मैंने कहा- यह क्या बला है, और इस वक्त रुपयो के बिना कौन कयामत बरपा हो रही थी? नवाब साहब को भी गुस्सा आ गया। कहने लगे- कयामत नहीं वरया हो रही थी, सो मैं यों ही झख मारने पाया हूं इस वक्त ? हजरत, यह मेरी भी पीनक का वक्त था। 'मगर इस वक्त रुपए तुम क्या करोगे ?' 'फेंक दूगा सड़क पर, तुम से मतलब ?'