पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/१४७

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१४२ सामाजिक कहानियां 'नहीं सुना 'रुपए नहीं हैं। 'रुपए न होने की खूब कही, बुलाऊं भाभी को ?' 'भाभी तुम्हारी क्या तोप से उड़ा देंगी, बुलानो चाहे जिसको, रुपए नहीं हैं।' 'समझ गया, बेहयाई पर कमर कसे हुए हो । लामो, चुपके से रुपए दे दो, अभी मुझे सदर तक दौड़ना होगा।' 'सदर तक क्यों?' 'एक बोतल व्हिल्की और गजक लेने, और क्यों ।' 'अच्छा, तो हज़रत को शराब के लिए रुपए चाहिए।' 'जी हां, शराब के लिए, और कवाव के लिए भी, निकालो जल्दी से।' 'कह तो दिया, रुपए नहीं हैं।' 'तुमने तो कह दिया, पर हमने तो सुना ही नहीं।' तो जहन्नुम में जायो। 'कहीं भी हम जाएं तुम्हारी बला से, लामो तुम रुपए दो।' 'रुपए नहीं दूगा, अब तुम खसकन्त हो यहां से नवाव ।' 'चे खुश । रुपए तो मैं खड़े-खड़े अभी लूंगा तुमसे ।' 'क्या तुम्हारा कर्ज़ चाहिए मुझपर ?' 'कर्ज़ ही तो मांगता हूं।' 'मैं कर्ज़ नहीं देता।' 'देखता हूं कैसे नहीं दोगे, बुलाओ भाभी को भी अपनी हिमायत पर।' नवाब ने गुस्से से आस्तीन चढ़ानी शुरू की। मुझे बुरी तरह हंसी आ गई। कहा-क्या मारपीट भी करने पर आमादा हो ? 'मारपीट ! तुम मारपीट की कहते हो, मैं तुम्हें गोली न मार दूं तो नवाब ननकू नहीं।' मैंने हंसकर कहा---गोली मार दोगे तो फिर रुपया कहां से वसूल करोगे नवाब साहब? 'बस इसी बात को सोचकर तो तरह दे जाता हूं, निकालो रुपए ।' 'लेकिन नवाब. तुम तो कभी नहीं पीते थे. अाज यह क्या बात है ?' 3