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बौद्ध कहानियां
 


रहा है, वे फट गए हैं। वृद्ध ने स्नेह से उसे चुमकारकर कहा-बस, अब थोड़ी दूर और; निकट ही कहीं गांव या बस्ती मिलने पर ठहरने में सुभीता रहेगा। पर बालिका और कुछ पग चलकर मार्ग में ही एक ऊंची जगह पर बैठ गई । वृद्ध भी निरुपाय हो, पास ही बैठ गया। अन्धकार ने चारों ओर से उन्हें घेर लिया।

सहसा बालिका ने चौंककर कहा--पिताजी, देखो, घोड़ों की टाप का शब्द सुनाई दे रहा है ! बुड्ढे ने उठकर दूर तक दृष्टि करके देखा। सड़क के निकट एक धना सेमल का वृक्ष था, जिसके नीचे घोर अन्धकार था। वृद्ध कन्या का हाथ पकड़, वहीं जा छिपा । आकाश में अब भी बादल घिर रहे थे और फिर जोर की वर्षा होने के रंग-ढंग दीख पड़ते थे। बीच-बीच में बिजली भी चमक जाती थी। थोड़ी देर बाद बहुत से सवार वहां तक जा पहुंचे। वर्षा भी शुरू हो गई । सवारों ने निश्चय किया कि उस वृक्ष के नीचे आश्रय लें।

वृद्ध भय से बालिका को छाती में छिपाए वृक्ष की जड़ में चिपककर बैठ गया। सहसा बिजली की चमक मे अश्वारोहियों ने वृक्ष के निकट मनुष्य-मूर्ति देखकर कहा- अरे ! वृक्ष के निकट यह कौन है ? वृद्ध वहां से हटकर चुपचाप खेत में जाने लगा। तत्क्षण एक वर्छा आकर उसकी छाती को विदीर्ण कर गया । वृद्ध एक चीत्कार करके धरती पर गिर गया। बालिका जोर से चिल्ला उठी।

अश्वारोही दल ने निकट जाकर देखा-मृत पुरुष वृद्ध और निरस्त्र है। पर कन्या को देखते ही वर्छा फेंकने वाले सवार ने कहा-बाह ! बूड़े को मार- कर रत्न मिला ! इसमें किसीका साझा नहीं है ?

बालिका भय और शोक से चिल्ला उठी । अश्वारोही ने उसकी परवा न कर, उसे उठाकर घोड़े पर रख लिया और वे आगे बढ़े।

वैभवशालिनी वैशाली का जो 'श्रेष्ठि-चत्वर' नामक बाजार था। उसके उत्तर कोण पर एक विशाल प्रासाद, जिसके गुम्बजों का प्रकाश रात्रि को गङ्गा पार से भी दीखता था। बाहर का सिंहहार विशाल पत्थरों का बनाया गया था, जिसे उठाना और जोड़ना दैत्यों का ही काम हो सकता था। इन पत्थरों पर स्थापत्यकला और शिल्प को सूक्ष्म बुद्धि खर्च की गई थी। ड्योढ़ी पर गहरा हरा रंग किया हुआ था और ऊंचे महावदार फाटक पर फूलों की गुथी हुई