पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/२०२

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ककड़ी की कीमत चाप चल दिया । सैकड़ों कण्ठों से नारा बुलन्द हुअा--वाह माई, महरा, क्यों न हो? आखिर तू है किस घराने का नौकर, जो इस समय दिल्ली की नाक है। शाबास! बूढ़े ने कमर से रुपए खोलकर गिन दिए। ककड़ियां ली और इस भांति अपने मालिक के घर को चला, जैसे वह एक राज्य विजय कर लाया हो। बूढ़े ने अपने मालिक लाला जगतनारायणजी के सामने जाकर फूलों और केले के पत्तों में लिपटी हुई ककड़ियां रख दी । शाम हो चली थी। लालाजी ने पूछा-क्या दो ही मिली ? 'जी हां, बाजारभर में सिर्फ दो ही ककड़ियां थीं। जिन्हें आपका सेवक सौ रुपए में खरीद लाया है।' इसके बाद कहार ने जो घटना बाजार में घटी थी, सब कह सुनाई । लाला ने सब सुना । क्षणभर वे स्तम्भित रहे । क्षणभर बाद उन्होंने अपने गले से सोने का तोड़ा उतारकर बूढ़े के गले में डाल दिया और उसके बदन को दुशाले मे लपेटकर स्वयं भी उससे लिपट गए । उनकी आंखों से आसुओं की धारा बह निकली। उन्होंने गद्गद कण्ठ से कहा-शाबास मेरे प्यारे रामदीन, तुमने बाजार में मेरी प्रतिष्ठा बचा ली। इसके बाद उन्होंने चांदी की तश्तरी में कक- डियों को उन्हीं गुलाब के फूलों में रखकर ऊपर कमख्वाब का एक रूमाल ढांक- कर कहा-~-जाओ, लाला शिवप्रसादजी से मेरा जयगोपाल कहना, और कहना कि आपके सेवक ने यह प्रेम की सौगात भेजी है और हाथ जोड़कर अर्ज की है कि स्वीकार करके इज्जत अफजाई करें। युवक से सब घटना सुनकर शिवप्रसादजी चुपचाप मसनद पर लुढ़क गए। मुह की गिलौरी उन्होंने थूक दी। नौकर-चाकर चिन्तित हुए । पर कोई कुछ नहीं कह सकता था। थोड़ी ही देर में बूढ़े रामदीन ने आकर अदव से आगे बढ़कर तश्तरी लाला शिवप्रसादजी के सामने रख दी और हाथ जोड़कर अपने मालिक का सन्देश भी निवेदन कर दिया। लाल शिवप्रसादजी चुपचाप एकटक तश्तरी में रखी दोनों ककड़ियों को देखते रहे। कुछ देर बाद उन्होंने ककड़ियां भीतर भिजवा दी और तश्तरी अशफियों से भरकर कहा-यह तुम्हारा इनाम है ।