पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/२०१

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१६२ समस्या कहानिय मस्तानी अदा से पुकारता हुआ ककड़ी वाला पीछे को फिरा । पुकारने वाला कहा था । वह एक बुड्ढा आदमी था। उसकी सफेद-सफेद बड़ी मूंछे, पक्का रंग, लट्र की मिर्ज़ई, दुपल्ली टोपी और चौखाने का अंगोछा कंधे पर पड़ा हुआ था। ककड़ियों को देखकर उसने कहा-सिर्फ दो ही रखे हैं ? 'अभी ककड़ियां कहां? वह तो कहो, चार रवे लाया था। दो बिक गए, दो ये हैं । लेना हो तो लो, मोलभाव का काम नहीं, चवन्नी लूंगा।' बूढ़ा कहार अभी नहीं वोला था। एक युवक ने तीव्र आवाज में कहा-- अठन्नी लो जी, ककड़ियां हमें दो। पहलवान युवक भी कहार था। उसकी मसें अभी भीगी थीं। भुजदण्डों में मछलियां उभर रही थीं। उसने हेरती हुई अखिों से बूढ़े कहार की ओर देखा और अठन्नी टन से झावे में फेंक दी। 'सौदा हमसे हुआ है जी, ककड़ियां हम लेंगे। यह लो एक रुपया । कक- ड़ियां हमें दो।' कुजड़ा क्षणभर स्तम्भित रहा। उसने प्रश्नवाचक दृष्टि से युवक की ओर देखा । युवक ने कहा कुछ परवाह नहीं, हम दो रुपए देगे । 'हम पांच रुपए देते हैं।' 'हम' दस देते हैं।' 'यह लो बीस रुपए । ककडी तो हम खरीद चुके ।' 'पच्चीस हैं यह, ककड़ी हमने ले ली ।' 'हमने तीस दिए।" युवक के माथे पर बल पड़ गए। उसने कहा- हम पचास में खरीदते हैं। नायो ककड़ियां इधर दो बूढ़े कहार ने हंस दिया और प्राज्ञा की दृष्टि से युवक की ओर देखकर रा सीधा खड़ा होकर उसने तेज स्वर में कहा-मैंने सौ रुपए में दोनों कक- उयां खरीद ली। युवक कहार क्षणभर घबराई दृष्टि से बूढ़े की ओर देखता रहा। बूढ़े ने जयगर्वित दृष्टि से उसे घूरते हुए कहा–दम हो तो बढ़ो भागे । ककड़िया च हजार तक मेरे यहां जाएंगी। सैकड़ों आदमी इकट्ठे हो गए थे। युवक लज्जा और क्रोध से भरकर चुप-