पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/२०४

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-- कहानी खत्म हो गई एक असहाय विधवा के पतन की दर्दनाक कथा, जिसे नीचे धकेलने में समाज ने चेष्टा को परन्तु पाप और अपराध की गठरी उसके सिर पंधी। . चाय पाने में देर हो रही थी । और मेरा मिजाज गर्म होता जा रहा था । आप तो जानते ही है, मैं इन्तजार का पानी नहीं । फिर, चाय का इन्तजार। मेजर वर्मा ने यह बात माप ली, उन्होंने एक हिट दिया । बोले-~-चौवरी उस औरत का फिर क्या हुआ ? क्षण भर के लिए चाय पर से मेरा ध्यान हट गया, एक सिहरन-सी सारे शरीर में दौड़ गई, जैसे बिजली का तार छू गया हो । मैंने चौंककर मेजर की ओर देखा ! पर जवाब देते न बना, बात मुंह से न फूटी। एक अजीब सी बेचैनी मै महसूस करने लगा। लेकिन मेजर वर्मा जैसे अपने प्रश्न का उत्तर लेने पर तुले हुए थे । वे एक- टक मेरी ओर देख रहे थे । प्रश्न का मेरे ऊपर जो अमर हुआ था, उमे मित्र- मण्डली ने भी भांप लिया । वे लोग अपनी गपशप में लगे थे, पर विंग कमा- उर भारद्वाज ने हंसकर कहा-कौन औरत भई, उसमें हमारा भी शेअर है । भारद्वाज की हंसी में न मैंने साथ दिया न मेजर वर्मा ने । वर्मा की उत्सुकता उनकी आंखों से प्रकट हो रही थी। मैं उनकी प्रांखों से आंख न मिला सका। आप ही मेरी आंखें नीचे को झुक गई । मैंने धीरे से कहा-मर गई। मेजर को छाती में जैसे किसीने बूंसा मारा। उन्होंने एकदम कुर्सी से उछलकर कहा-अरे, कब ? 'कल सुबह'-मैंने धीरे से कहा । मित्र-मर्डली की गपशप एकदम वन्द हो गई। वे सब मेरी ओर देखने लगे। वातावरण एकदम गम्भीर हो गया। मेरे चेहरे पर जो वेदना की रेखाए उभर आई थीं, उन्होने सभीको अभिभूत कर दिया । सव से अधिक फ़ील क्यिा

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