पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/२०५

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समस्या कहानिया 'मिसेज शुक्ला ने। उन्होंने मेरी ओर खिसककर अपने नंगे कंधे मेरे कंधों से छुअा दिए, फिर धीरे से पूछा- कौन थी ? 'थी एक,' एक गहरी सांस लेकर मैंने कहा । 'क्या वीमार थी? 'बीमार कोई और था, लेकिन मर गई वह ।' मेरा जवाब असाधारण था, और मैं एकाएक उत्तेजित और असंयत हो उठा था । मेजर भी जैसे मेरे जवाब से जड़ बन गए थे। इसीसे इस औरत के सम्बन्ध में सभी की जिज्ञासा जाग गई। वेटर कब चाय रख गया, इसका ज्ञान भी हममें से किसीको नहीं हुआ। भारद्वाज ने कहा-यह तो कोई बहुत ही सीरियस केस मालूम पड़ता है। मेजर वर्मा ने बीच ही में बात पकड़ ली। उन्होंने कहा--सीरियस होने से क्या शक है । लेकिन हुअा क्या ? 'क्या पूरा ही किस्सा मुना दूं ?' मैंने कुछ दर्द भरे स्वर में कहा। मेरे कहने का ढंग शायद कुछ प्रभावशाली था। सभी मेरे मुंह की ओर देखने लगे। भारद्वाज ने कहा- ज़रूर, जरूर । पूरा ही किस्सा सुनाइए। मिसेज़ शर्मा ने चा' का प्याला तैयार किया, मेरी ओर बढ़ाया, कहा- लीजिए, एक सिप लीजिए। मैंने दो सिप लिए और प्याला एक ओर टेवुल पर रख दिया। फिर मैंने कहा-आप लोग समझते होंगे, ज्यादातर ट्रेजेडी शहरों में होती है, क्योंकि वहा संघर्ष है, दिमाग है, कानून है, रुपया है, शान है । सब चुपचाप सुनते रहे । मैं आगे क्या कहना चाहता हूं इसीपर सबका ध्यान केन्द्रित था। मैंने कहा--लेकिन हमारे देहातों में भी कभी ऐसी ट्रेजेडी हो जाती हैं जो मनुष्यता और सभ्यता को एक करारा चैलेंज देती हैं। वहा रुपया नहीं है, दिमाग नहीं है, कानून नहीं है, शान नहीं है, केवल दिल है । कमांडर भारद्वाज उछल पड़े। जोर-जोर से बोले- अरे यार, तो यह कोई दिल' वाला मामला है। तब मैं ज़रूर सुनूंगा। उन्होंने सिगरेट का एक गहरा कध लिया । भारद्वाज का यह गुंडा जैसा टोन मुझे पसन्द न आया । वास्तव में मेरा मूड कुछ दूसरा ही था—मैंने एक व्यंगवाण छोड़ा, कहा- क्यों नहीं, आप दिल- फेंक जो ठहरे । पर यह कहानी दिल वालों की है।