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अम्बपालिका
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अम्बपालिका अपनी कृपा और प्रेम के चिह्न-स्वरूप कभी-कभी ताजे फूलों की एकाध माला तथा कुछ गन्ध द्रव्य उन्हें प्रदान कर दिया करती थी।

विधाता ने मानो उसे स्वर्ण से बनाया था। उसका रंग गोरा ही न था, उसपर सुनहरी प्रभा थी--जैसी चम्पे की अविकसित कली में होती है। उसके शरीर की लचक, अङ्गो की सुडौलता वर्णन से बाहर की बात थी। उस सौन्दर्य मे विशेषता यह थी कि समय का अत्याचार भी उस सीन्दर्य को नष्ट न कर सकता था। जैसे मोती का पर्त उतार देने से भीतर से नई आभा, नया पानी दमकने लगता है, उसी प्रकार अम्बपालिका का शरीर प्रतिवर्ष निखार पाता था । उसका कद कुछ लम्बा, देह मांसल और कुच पीन थे। तिसपर उसकी कमर इतनी पतली थी कि उसे कटिबन्धन बांधने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती थी। उसके अङ्ग-प्रत्यङ्ग चैतन्य थे, मानो प्रकृति ने उन्हें नृत्य करने और आनन्द-भोग करने को बनाया था।

उसके नेत्रों में मुक्ष्म लालसा की झलक और दृष्टि में गजब की मदिरा भर रही थी। उसका स्वभाव सतेज था, चितवन में हडता, निर्भीकता, विनोद और स्वेच्छाचारिता साफ झलकती थी। उसे देखते ही आमोद-प्रमोद की अभि- लाषा प्रत्येक पुरुष के हृदय में उत्पन्न हो जाती थी।

जैसा कहा जा चुका है, उसकी रंगत पर एक सुनहरी झलक थी ; गाल कोमल और गुलाबी थे ; श्रोठ लाल और उत्फुल्ल थे, मानो कोई पका हुआ रसीला फल चमक रहा हो। उसके दांत हीरे की तरह स्वच्छ, चमकदार और अनार की पंक्ति की तरह सुडौल, कुच पीन तथा अनीदार थे। नाक पतली, गर्दन हंस जैसी, कन्धे सुडौल, बाहु मृणाल जैसी थी। सिर के बाल काले, लम्बे और धुंधराले तथा रेशम से भी मुलायम थे । आँखें काली और कंटीली उंगलियां पतली और मुलायम थीं। उनपर उसके गुलाबी नाखूनों की बड़ी बहार थी। पैर छोटे और सुन्दर थे। जब वह उसके साथ उठकर खड़ी हो जाती तो लोग उसे एकटक देखते रह जाते थे। उसकी भुजाओं और देह का पूर्व भाग सदा खुला रहता था।

वैशाली में बड़ी भारी वेचनी फैल गई। अश्वारोही दल के दल नगर के तोरण से होकर नगर से बाहर निकल रहे थे। प्रतिहार लोग और किसीको ना