पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/२१८

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कहानी खत्म हो गई ? मेरी बिल्कुल इच्छा नहीं थी कि मुझे एकान्त में उससे बात करते कोई देख ले। पर मैं उसका अनुरोध न टाल सका । मैंने कहा-क्या बहुत जरूरी बात है उसकी प्रांखें भर आई। उसने धीरे से कहा-~~जी हां। और जब हम रास्ते से हटकर उस बड़े बरगद की छांह में गए तत्र चारो योर अंधेरा फैल चुका था। उसने एक ही वाक्य में वह वात कह दी । सुनकर मै ठण्डा पड़ गया। मेरे मुह से वात न निकली। बहुत देर वह मेरे उत्तर की प्रतीक्षा करती रही। फिर उसने धीरे से कहा-आपको मैं न किसी झंझट में डालना चाहती हूं, न आपपर मै कोई बोझ लादना चाहती हूं। सव कुछ मैं स्वयं नुगत नूंगी ! परंतु पिताजी का देहात हो चुका। मेरा अब पृथ्वी पर कोई नहीं है। आप गांव के राजा हैं ; रियाया के माई-बाप है। मैं और किसी अधिकार की बात नहीं कहती-किमी ददनामी के भय से श्राप डरे नहीं। मर जाऊंगी, पर आपका नाम न लूंगी। परन्तु, मैं औरत हूं, असहाय हूं। मेरा कोई हमदर्द नहीं, आप ही अब मुझे राह बताइए। मैं शर्म से गड़ा जा रहा था। समझ रहा था कि वह औरत मुझे कितना कायर समझ रही है। यह कुछ झूठ भी न था। मैंने अन्त में कहा- मुझसे तुम क्या चाहती हो ? मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूं? अाखिर मैं एक इज्जतदार आदमी हूं। तुम्हें यह सोचना चाहिए। 'सोचकर ही तो कह रही हूं।' 'क्या तुम कुछ रुपया-पैसा चाहती हो। ?' 'नहीं।' 'तव क्या चाहती हो ?' 'अपनी इज्जत बचाना । आप राजा रईस हैं, मैं गरीव, अनाथ, विधवा, राड स्त्री हूं। जिस परिस्थिति में मैं फंस गई हूं उसके लिए मैं अकेले आपको जिम्मेवार नहीं ठहरा सकती। दुर्बलता मेरी भी थी। फिर, मैं तुच्छ स्त्री हू। सभी भोग मैं ही भोग लूंगी पर इज्जत-आबरू मेरी भी है। मेरे पिता आपके एक ईमानदार सेवक ये। मैं आपके गांव की बेटी हूं, मेरी वदनामी गांव की बदनामी है। वह मैं न होने दूगी, इसमें आप मेरी मदद कीजिए । 'लेकिन कैसी मदद ? रुपया-पैसा तो तुम चाहती ही नहीं।' 'जी नहीं ?'