श्रीमान् ! प्रतिहार वहीं रुक गया । नवीन व्यक्ति स्त्री थी और वह सर्वाग
काले वस्त्र से ढापे हुए थी। दोनों भागन्तुक कई प्राङ्गण और अलिन्द पार करते
हुए कुछ सीढ़िया उतरकर एक छोटे से द्वार पर पहुंचे जो चांदी का था और
जिसपर अतिशय मनोहर जाली का काम हो रहा था और उसी जाली में से
छन-छनकर रंगीन प्रकाश बाहर पड़ रहा था।
द्वार खोलते ही देखा : एक बहुत बड़ा कम भिन्न-भिन्न प्रकार की सुख-साम- त्रियों से परिपूर्ण था। यद्यपि उतना बड़ा नहीं, जहां नागरिक जनों का प्राय स्वागत होता था, परन्तु सजावट की दृष्टि से इस कक्ष के सम्मुख उसकी गणना नहीं हो सकती थी। यह समस्त भवन श्वेत और काले पत्थरों से बना था। और सर्वत्र ही सुनहरी पच्चीकारी का काम हो रहा था। उसमें बड़े-बड़े बिल्लौर के अठपहलू अमूल्य खम्भे लगे थे, जिनमें मनुष्य का हूबहू प्रतिबिम्बि सहस्रों की संख्याओं में दीखता था। बड़े-बड़े और भिन्न-भिन्न भावपूर्ण चित्र टंगे थे। सहस्र दीप-गुच्छों में सुगन्धित तेल जल रहा था। समस्त कक्ष भीनी सुगन्ध से महक रहा था । धरती पर एक महामूल्यवान् रंगीन विछावन था जिसपर पैर पड़ते ही हाथ भर धंस जाता था। बीचोंबीच एक विचित्र प्राकृति की सोलह- पहलू सोने की चौकी पड़ी थी, जिसपर मोर पंख के खम्भों पर मोतियों की झालर लगा एक चन्दोवा तन रहा था। और पीछे रंगीन रेशम के परदे लटक रहे थे, जिसमें ताजे पुष्पों का श्रृंगार बड़ी सुघड़ाई से किया गया था। निकट ही एक छोटी सी रत्न-जटित तिपाई पर मद्य-पात्र और पन्ने का एक बड़ा सा पात्र धरा हुआ था।
हठात् सामने का परदा उठा और उसमे से वह रूप-राशि प्रकट हुई जिसके बिना अलिन्द शून्य हो रहा था। उसे देखते ही आगन्तुकगण में से एक तो धीरे- धीरे पीछे हटकर कक्ष से बाहर हो गया, दूसरा व्यक्ति स्तम्भित-सा खड़ा रहा । अम्बपालिका आगे बढ़ी। वह बहुत महीन श्वेत रेशम की पोशाक पहने हुए थी। वह इतनी बारीक थी कि उसके पार-पार साफ़ दीख पड़ता था। उसमें से छनकर उसके सुनहरे शरीर की रंगत अपूर्व छटा दिखा रही थी। पर यह रग कमर तक ही था। वह चोली या कोई दूसरा वस्त्र नहीं पहने थी। इसलिए उसकी कमर के ऊपर के अङ्ग-प्रत्यङ्ग साफ दीख पड़ते थे।
विधाता ने उसे किस क्षण में गढ़ा था ! हमारी तो यह धारणा है कि कोई