२३२ राजनीतिक कहानिया गया तो क्या ? वोलो तुम क्या कहते हो ? उसकी आंखों से झर-झर प्रांसू टपक गए। उसने गद्गद कण्ठ से कहा- श्रीमन्, मैं भी कैसा अपदार्थ हूं ! मैं अपनी स्त्री-बच्चे को त्यागने में कष्ट पा रहा हूं, परन्तु प्राप'ओह ! आपके सम्मुख मै लज्जित होने का कारण न पैदा होने दूंगा। मैं सोचूंगा, कल इसी समय मैं आपको वचन दूंगा। सिर्फ कल भर आप और रहने दीजिए। 'कुछ हर्ज नही, पर समझ लेना, मृत्यु की पद-पद पर प्राशङ्का है । भय और विपत्ति के वादलों में जाना होगा। जरा भी विचलित हुए, जरा भी स्त्री- बच्चों के मुख का स्मरण आया, ज़रा भी मन में भीरुता आई, तो देश अतल पाताल में गया ही समझना, साथ ही पचासों वीर मित्रों की जान जाएगी। सब कुछ मिट्टी में मिल जाएगा।' 'श्रीमन्, क्या आप नहीं जानते, मैं किसका पुत्र हूं ?' 'जानता हूं, पर तुम्हें स्वयं भी कुछ होना चाहिए।' 'तब श्रीमान् का मुझपर विश्वास नहीं ?' 'विश्वास ? विश्वास अपनी प्रात्मा से भी अधिक है। मैं अपने विश्वास से बेफिक्र हूं। मैं यह चाहता हूं कि तुम्हें स्वयं अपने ऊपर विश्वास हो ।' वह अधोमुख होकर सोचने लगा। मैंने मन में वेदना अनुभव की । लाखो युवकों में मैंने इसे चुना है, क्या मैं धोखा खाऊगा ? मैंने उसे विदा किया, वह चला गया। दूसरे दिन ठीक समय पर मिलते ही उसने कहा-श्रीमन्, मैं तैयार है। उसने अपना हाथ बढ़ा दिया। मै घोर संदिग्ध अवस्था में था। क्षण भर मैं उसे देखता रहा। क्या यह सच है ? महान् विचारधाराओं के कार्य-रूप मे परिणत होने का समय क्या आ गया ? ओह प्यारे भारतवर्ष ! ठहरो। मैंने खड़ा होकर उसका स्वागत किया। मैं कुछ बोल न सका । मेरे नेत्रों में पासू थे । कुछ ठहरकर मैंने कहा--प्यारे युवक, मैं प्रतिज्ञा करता हूं, प्राण रहते तुम्हारी रक्षा करूंगा। प्रत्येक खतरे को अपने सिर पर लूंगा। तुम्हें प्राणो से अधिक प्यार करूंगा, परन्तु फिर भी तुम्हें प्रतिज्ञा करनी है कि यदि कुअवसर उपस्थित हो तो अपने प्राणों को, शरीर को अपदार्थ समझोगे । अभी तुम्हारे सम्मुख जो भयानक गम्भीर भेद प्रकट होंगे, उन्हें तुम्हारे हृदय से बाहर तब तक
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