पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/२४३

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जीवन्मृत न पाना चाहिए, जब तक कि तुम्हारे हृदय को चीरकर टुकड़े-टुकड़े न कर दिया जाए। तुम सदा यह समझकर अपने जीवन को बलिदान करने के लिए तैयार रहना कि इससे सैकड़ों सच्चे वीरों के जीवन की रक्षा होगी, जो अब नहीं तो फिर कभी न कभी देश का उद्धार करेगे। युवक के नेत्रों में स्थिरता थी। उसने सहज-शान्त स्वर में कहा-श्रीमन्, हर तरह परीक्षा कर लें। मैने कहा-तुम्हारे पिता की भक्ति मेरे हृदय में धरोहर है। मैंने उनले आदेश ले लिया है । तुम्हारी यही परीक्षा काफी है। तुम केवल मुख से एक बार कह दो कि तुम भेदों को प्राणों से बढकर समझोगे । 'विपत्ति आने पर तुम स्थिर रहोगे ?' "उसी लरह, जैसे पत्थर की मूर्ति रहती है।' 'यदि तुम्हें मृत्यु का आलिङ्गन करना पड़े ?' 'तो मैं उसे अपने पुत्र की तरह गले लगाऊंगा।' 'यदि तुम्हें भेद लेने के लिए असह्य वेदनाएं दी जाएं ?' 'मैं धर्म से शपथपूर्वक कहता हूं कि मृत्यु-पर्यन्त उन्हें सहन करूंगा।' 'यदि प्रलोभन दिए जाएं ?" 'वे मुझे विचलित नहीं कर सकेंगे।' युवक के होंठ कांये । नेत्रों की पुतलियां चलायमान हुई । मैंने अधीर होकर कहा--प्रलोभन ? क्या प्रलोभन तुम्हें चलायमान न कर सकेंगे ? नहीं श्रीमन्, अभी मैं बड़े से बड़े प्रलोभन को त्याग पाया हूं।' मुझे सन्तोष न हुआ। मैं उठकर व्हलने लगा। मैं सोचने लगा-वेदना, यातना और मृत्यु, ये एक पोर है, परन्तु प्रलोभन ? ओह, इसका अन्त नहीं ! यह युवक वेदना सहेगा, मृत्यु का प्रालिङ्गन भी करेगा । मैं विश्वास करता हूँ, पर प्रलोभन ? ओह. विश्वास नहीं होता ! शायद उसे स्वयं भी विश्वास नहीं। युवक ने मेरे पास आकर कहा-श्रीमान् क्या विश्वास नहीं करते ? 'मेरे प्यारे मित्र, मैं तुम्हारे साथ अन्याय कर रहा हूं। मुझे विश्वास करना चाहिए।' मैंने युवक को छाती से लगा लिया। मैंने कहा-~लो, अब हम-तुम एक हुए, एक महान कार्य की पूर्ति के लिए । यदि परमेश्वर को अभीष्ट तो हम मरकर भी अमर होगे । हम दोनों करोड़ों मनुष्यों से अधिक शक्तिशाली है।