पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/२५८

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राजनीतिक कहानिया २४८ है । पर नियमानुसार तुम्हें क्षमा पुरस्कार में दी जाती है। मैं उठकर चला आया। देशभर घूभा, कहीं ठहरा नहीं। भूख, प्यास, विश्राम और शान्ति की इच्छा ही मर गई दीग्वती है । इस, अब वही पत्र मेरे नेत्र और हृदय की रोशनी है। मेरा वारन्ट निकला था, मन में पाया कि फासी पर जा चढं । फिर सोचा, मरते ही उस सज्जन को भूल जाऊंगा। मरने मे अव क्या स्वाद है ? जीना चाहता हूं। किसी तरह मदा जीते रहने की लालसा मन में बसी है । जीते जी ही मैं उसे देख और याद रख सकता हूं। । -