पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/२६०

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मुहब्बत राजा-रईसो के जीवन कितने विलासमय, वासनापूर्ण और अरक्षित होते है, और बहुधा वे खतरनाक घटनाओं के शिकार हो जाते हैं- इसका एक तथ्यपूर्ण उदाहरण प्रस्तुत कहानी में है । प्राचार्य का राजा-रजवाड़ों से गहरा सम्पर्क रहा है, अतः इस कहानी में उनकी भानुभूति की स्पष्ट छाप है। राजा साहब की अांखें हंस रही थीं। उन्हीं आंखों से उन्होंने मेरी ओर देखा, मुस्कराए, और मसनद पर उठंग वैठकर मेरी ओर झुकवार धीमे स्वर में कहा---देखी मुहब्बत ! मतलब न समझ सकने पर मैंने अांखों में ही प्रश्न किया। राजा साहब ने चार बीड़ा पान मुह में ढूंसते हुए कहा-आप प्रांख वाले है- देखिए साहब । राजा साहब बहुत खुश थे। रियासती अदब और शिष्टाचार वातावरण में भर रहा था। कुवर साह्न भी एक कोने में सजे-धजे बैठे थे। जरवफकी शेर- बानी, सिर पर मंडील उसपर हीरों की कलगी, गले में पन्ने का भारी कण्ठा । मगर अांखें नीचे झुकी हुई। राजा साहब की एक-एक बात पर कहकहे पड़ रहे थे, बीच-बीच में मुखरा वी साह्न भी फिकरा कस देती थीं। जिसपर कहकहा तो लाज़िमी था, मगर क्या मजाल कि कुंवर की मूंछों का बाल भी मुस्करा जाय । महफिल में बैठना उनके लिए दरबारी अदब के लिए जितना ज़रूरी था उससे अधिक महाराज के अदव से प्रांखें नीची रखना भी जरूरी था। सरगियो की उंगलिया सिसकारी भर रही थीं और तबला तड़पकर हाय-हाय कर रहा था । मुझे यह सब १८वीं शताब्दी का सामन्तशाही दृश्य बिल्कुल ही भोंड़ा जंच रहा था । संगीत के नाम पर वह केवल चीख थी और नृत्य के नाम पर उछल-कूद। मगर लोग थे कि छिन-छिन पर वाह-वाह के नारे लगा रहे थे। कहकहों की धूम मची थी और वेश्याओं पर वाहवाही के साथ इनाम, न्यौछावरी की वर्षा हो रही थी। मुस्कराना तो मुझे भी पड़ रहा था। क्या करूं, राजा साहब का इतना लिहाज

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