पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/२७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रजवाड़ों की कहानिया २६८ याद रखिए, खूनखराबी की नौबत आई तो इसके जिम्मेदार आप ही होंगे।' 'तो आप हमें धमकी दे रहे है ? सरीन वह आवारा कुत्ता कोठी में घुस आया और मेरी जुबेदा को भगा ले गया। इस जुल्म को तो देखिए।' 'कमाल करते हैं आप राजा साहव ! जिसको आप आवारा कहते हैं, क्या श्राप नहीं जानते कि बहुत मुद्दत की खोज के बाद जिम को मैंने जनाब गवर्नर साहब बहादुर से सौगात में पाया था ?' 'क्यों नहीं, जनाव गवर्नर साहव बहादुर से तो अापकी पुश्तैनी रसाई है। जाइए, कुत्ता नहीं खोला जाएगा।' 'अच्छी नादिरशाही है। यह आप हमारी खानदानी तौहीन कर 'खूब-खूब, गोया आप भी खानदानी रईस है। दो दिन की जमींदारी को चोरी-चकारी से बढ़ाकर और बनियागिरी से चार पैसे जोड़ लिए सो आप हो गए खानदानी रईरा ! कमाल हो गया । और हम जो बहादुरशाह के जमाने से रईस न चले पा रहे है, सो आपका कुत्ता हमारी खानदानी कुतिया से श्राशनाई करेगा। ऐं, यह हिमाकत !' 'रस्सी जल गई, ऐंठन बाकी है ! बाल-बाल तो कर्ज में बिधे पड़े हैं, प्राप खानदानी रईस बनते है । राजा साहब, होश की लीजिए, चोरी और डाकेजनी के जुर्म में सारे खानदान को न बंधवा लूं तो रामधारी नाम नहीं। पाप है किस फेर में ? 'आख्खा, तो यह भी देख लिया जाएगा। कर देखिए आप । नया रुपया है, उछलेगा तो जरूर ही। लेकिन मैं कहे देता हूं, लन्दन से बैरिस्टर बुलाऊगा लन्दन से । भोपाल गंज रियासत की भले ही एक-एक ईंट बिक जाए । परवाह नहीं।' 'तो यहां भी कौन परवाह करता है। मैं खड़े-खड़े माधोगंज की जमींदारी को बेच दूंगा । और वाशिंगटन से कौंसिल बुलाऊंगा।' 'देखा जाएगा गवर्नर साहब, बहादुर की दोस्ती पर न फुलिएगा। पक्की शहादतें दूंगा । पता चल जाएगा कोर्ट में ।' 'देख लूंगा, किसके धड़ पर दो सिर हैं ! कौन शहादत देने नाता हैं !' 'तो तुमपर तीन हरफ हैं जो करनी में कसर रक्सो ।'