पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/२७७

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IS २६७ राजा साहब की कुतिया 'जी नहीं, सरकार !' 'तो फिर ?' राजा साहब ने पाखें तरेरकर मेरी ओर देखा। इस 'तो फिर' का क्या जवाब दूं, यह समझ ही न सका। हाथ बांधे खड़ा रहा । इसी समय एक खिदमतगार घबराया हुआ दौडता आया । पाकर उसने राजा साहब से कहा- सरकार, माधोगंज की कोठी का प्यादा हाथ में लट्ट लिए फाटक पर खड़ा है । वह कहता है खैरियत इसीमें है कि 'जिम' को खोल दीजिए, वरना हंगामा मच जाएगा। राजा साहब ने तैश में प्राकर कहा-ऐसा नहीं हो सकता । माधोगंज वाली से जो करते बने करें। लेकिन माधोगंज की कोठी का प्यादा खुद ही भीतर घुस पाया। उसने खूब झुककर राजा साहब को सलाम किया और हाथ बांधकर अर्ज की-हुजूर ! खुद बड़े सरकार ने मुझे भेजा है, उन्हें बहुत रंज है । लेकिन सरकार, अब हुक्म हो जाए कि कुत्ता खोलकर मेरे हवाले कर दिया जाए । बड़े सरकार बड़े गुस्सैल हैं, धुन पर चढ़ गए तो नाहक कोई खून हो जाएगा। राजा साहब गरज पड़े-क्या कहा, खून हो जाएगा ? बढ़कर बोलता है ! नामाकूल, मर्दूद ! अच्छा ले। यह कहकर उन्होंने खूब चिल्लाकर अपने लठैतों को पुकारा --माधो, दीपा, रामू, गुल्लू, किसता ! परन्तु लठतों के स्थान पर आ खड़े हुए माधोगंज के राजा साहब रामधारी- सिंह । साठ साल की उम्र, लम्बा कद, हाथ में बढ़िया छड़ी, बदन पर पूरी रियासती पोशाक । उन्होंने एकदम राजा साहब के सामने पहुंचकर कहा- यह सापकी सरासर ज्यादती है राजा साहब, कि आप अपने नौकरों की बेजा हरकत पर उन्हें शह देते हैं। अापका लिहाज करता हूंबरना एक-एक की खाल खिंचवा लूं। बहुत हुआ, अब जिम को मेरे हवाले कीजिए। राजा साहब ने बुलडाग की भांति गुर्राकर कहा-क्या खूब ! यह दम-खम और शान? आप मेरे आदमियों की खाल खींच लेंगे ! गोया अाप ही उनके मालिक हैं। चोरी और सीना-जोरी! 'लेकिन चोरो की किसने?' 'जिम' ने । ट्रेसपास, एकदम क्रिमिनल ट्रेसपास !' 'श्राप ज्यादती कर रहे हैं राजा साहब ! इसका नतीजा अच्छा न होगा।