पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/२८०

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२७० रजवाड़ों की कहानियां और इस तरह खट से मेरा पतंग कट गया। इज्जत और आराम की नौकरी छूट गई । अब सिर्फ याद रह गए वे सात महीने और सत्ताईस दिन । अब कहां रहे वे खानदानी रईस । अंग्रेज बहादुर हिन्दुस्तान से क्या गए, शौकीन राजाभों और शानदार रईसों की नस्ल ही खत्म कर गए। भारत के भाग्य तो जरूर जागे--पर विलायती कुत्तों की और हम जैसे विलायती पढ़- पिठुओं की तकदीर तो फूटी और फिर फूटी।