पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/२८१

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राजा साहब को पतळून यह भी एक मार्के की कहानी है, जिसमें राजाश्रों की सनक और फजूलखनों की हास्यापद वदना वर्णित है। वह पतलून उन्होंने खास तौर पर इसलिए तैयार कराई कि जब वे राउंड- टेबल कान्फेन्स में शरीक होने लन्दन जाएं तो कान्फ्रेन्स के खास इजलास मे उमी पतलून को पहनकर देश-देश के राजनीति-विशारदों के बीच बैठे, और पतलून से उनकी आंखों में चकाचौंध उत्पन्न कर दें। जबसे उन्हें सम्राट् जार्ज का सादर निमन्त्रण उक्त कान्फ्रेन्स मे शरीक होने के लिए मिला-तबसे ही वे इस उधेड़-बुन में रहे कि इस खास अवसर पर वे कोई ऐसी अनोखी चीज़ साथ ले जाए जो बेजोड़ हो और जिसकी विलायत में धूम मच जाए। खूब सोच-समझकर उन्होंने यह पतलून तैयार कराने का इरादा हड़ किया। उन्होंने यह तय कर लिया कि वे ऐसी बेजोड़ पतलून पहने जैसी संसार मे आज तक किसीने न पहनी हो। इस निश्चय में उनकी युक्ति यह थी कि जब गांधीजी सिर्फ एक लगोटी ही पहनकर उक्त कान्फ्रेन्स में जा रहे है तो क्यों न इस लंगोटी का जवाब इस पतलून से दिया जाए। इससे भारतीय संस्कृति का भी सवाल हल होता था। भारत के शिरोमणि दो ही जाति के पुरुष है : एक संत और दूसरे राजा। महात्मा सन्त है; वे लंगोटी पहनकर जाएंगे तो हम राजा है; हम पतलून पहनेंगे। जैसे उस राजसभा में गांधीजी की लंगोटी अद्वितीय होगी वैसे ही हमारी पत- लून । अब सवाल यह रह गया कि लंगोटी और पतलून में, इन दोनों में सबसे अधिक चर्चा का विषय कौन हो ? श्रेष्ठता किसे मिले ? बस, राजा साहब ने तय किया कि हम जो पतलून पहनेंगे, वही अद्वितीय रहेगी। वह गांधीजी की लगोटी को मात करेगी। और लन्दन की उस राउंड-टेबल कान्फेन्स मे उस पतलून की ही सर्वोपरि चर्चा रहेगी। जैसे कि राजा लोगों के खून में खास असर होता है, राजा साहब पक्ने

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