पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/२८४

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२७४ रजवाड़ो की कहानियां पोशाक पहनते है।' 'तो लोग कैसे जानेंगे कि मैं वहा गया ?' 'आप खूब जोरदार स्पीच दीजिए।' 'लेकिन पतलून?' 'यह पतलून नहीं पहन सकते।' राजा साहब उसी दिन नाराज हो गए। उनका लन्दन जाने का सारा उत्साह ही ठंडा पड़ गया। सारा मजा ही किरकिरा हो गया। उन्होंने ठंडी सांस लेकर कहा- 'फिर तो मेरा लन्दन जाना ही वेकार है।' 'बेकार क्यों है ?' 'मैं यह पतलून तो वहां पहन नहीं सकता।' 'लेकिन आप एक काम कर सकते हैं।' चतुर एटीकेट मिनिस्टर ने कहा। 'वह क्या ? 'लन्दन से वापसी में श्राप अपनी रियासत में एक ग्राड जल्सा कीजिए। उसमें यह पतलून पहन सकते है।' 'उसमें एटीकेट के खिलाफ नहीं होगा ?' 'जी नहीं, हिन्दुस्तान में एटीकेट का कोई सवाल ही नहीं है।' 'और फिर वह मेरी रियासत में है, में जो चाहूं कर सकता हूं।' बिशक ।' राजा साहब खुश हो गए। उन्होंने वहा-यही सही, लन्दन में न सही, वापसी में जवर्दस्त दरवार करूंगा, जिसमें यह पतलून पहनूगा । सो लन्दन से लौटते ही राजा साहब ने एक भारी दरवार का आयोजन किया। यह आयोजन राजा साहब की राउंड-टेबल कान्फ्रेंस से प्रवाई के सिलसिले में था। अनेक राजा, महाराजा, अंग्रेज अफसर निमंत्रित किए गए। बनारस के भांड, दिल्ली के नक्काल और वेश्या बुलाई गईं। नाच-तमाशों की धूमधाम मच गई। शिकारों के बड़े-बड़े प्रोग्राम बने । दावतों की खास तैयारी हुई। देश-देश के कलावंतों को बुलाया गया। जब दरबार का सिफ एक दिन रह गया तो राजा साहब मे एक बार पतलून