पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/२८३

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राजा साहब की पतलून २७३ स्टर तलव किया। वादशाह ने अपने कोई एक अर्ल को इस काम पर तैनात करके भेज दिया। शाही अदब और वेस्टर्न एटीकेट सिखाना तथा राजा साहब एटीकेट के जरा भी इधर-उधर कोई कान न कर सकें, इसकी निगरानो उसका काम था। ज्यों ही जहाज बम्बई से रवाना हुआ और लन्दन का कार्यक्रम बनने लगा, पतलून की चर्चा चली। परन्तु पतलून को अच्छी तरह देखभाल कर एटीकेट मिनिस्टर ने कहा- यह पतलून पाप लन्दन में नहीं पहन सकते। 'क्यों नहीं पहन सकता? 'एटीकेट के खिलाफ है। 'लेकिन गांधीजी कैसे लंगोटी पहन सकते है ?' 'वे पहन सकते हैं।' 'बह एटीकेट के खिलाफ क्यों नहीं है ?" 'उनके साथ ब्रिटिश सरकार की कोई ट्रोटी नहीं है-वे ब्रिटिश सबजेक्ट नहीं हैं। वे महात्मा है । वे वादशाह के प्रतिष्ठित मेहमान हैं।' 'मैं भी प्रतिष्ठित मेहमान हूं।' ‘पर आप वादशाह के अधीन राजा हैं।' 'तो इससे क्या ? इंग्लैण्ड से हमने कोई ऐसी ट्रीटी नहीं की है कि हम अपनी मनचाही पतलून न पहन सकें।' 'न सही, पर यह एटीकेट के खिलाफ है, वहां आपको जिस-जिस अवसर पर जैसी-जैसी पोशाक पहननी चाहिए, उनकी तैयारी का आर्डर मैने लंदन की एक प्रसिद्ध फर्म को दे दिया है । वहां पहुंचते ही वे पोशाकें मिल जाएंगी।' 'लेकिन मैं तो यह पतलून पहनकर खास इजलास में जाना चाहता हूं।' 'ऐसा नहीं हो सकता। 'क्यों नहीं हो सकता? 'कहा लो, एटीकेट के खिलाफ है।' 'फिर भी यदि मैं ?' 'तो लन्दन के लोग आपको पागल समझेंगे, आपका मजाक उड़ाएंगे।' 'यह तो सरासर बदतमीजी है।' 'बदतमीजी नहीं है, एटीकेट है। इंग्लण्ड सभ्य देश है। वहां सब एक-सी पहन