पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/३०४

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युगलांगुलीय रवीन्द्र ठाकुर की एक-दो पंक्तियों पर यह कहानी लिखी गई है, जिसमें दो श्रआधुनिकतम उच्चशिक्षिता भारतीय नारियों के विभिन्न दृष्टिकोणों की रेखाएं हैं। बहुत दिन बाद दोनों सखिया मिली थीं ; कोई पांच साल बाद । श्रद्धा और रेखा । दोनों बचपन में साथ खेली थीं, साथ ही पटी थीं। साथ ही दोनों ने प्रथम श्रेणी में एम० ए० परीक्षा पास की श्री। श्रद्धा ने दर्शन और मनोविज्ञान में, और रेखा ने राजनीति मे। दोनों में प्रगाढ प्रेम था। एक जान दो कालिब थीं दोनों। दोनों माथ खानी थी, एक दिन भी मिलन न होता तो वेचैन हो जाती थीं । लोग देशते थे और हमने थे। घर के लोग हसी में उन्हें जुड़वां वहनें कहते थे, और कालेज में उनकी मगिनियो ने उनका नाम रखा था युगलांगुलीय । श्रद्धा का विवाह हो गया, परन्तु रेना ने विवाह नहीं कराया । वह भारत सरकार में बजीफा पाकर उच्चशिक्षा प्राप्त करने यूरोप चली गई। यूरोप और अमेरिका के विश्वविद्यालयों में राजनीति और अर्थ- शास्त्र का अध्ययन करके उसने प्रतिष्ठा के नाय डाक्टरेट प्राप्त किया था। उसके थीसिस की परीक्षकों ने बड़ी प्रशसा की थी। इसके बाद उसने सारे यूरोप और बाद में सोवियत रूस में भ्रमण किया और वहां की राजनीति और अर्थशास्त्र का मनन-अध्ययन किया था। अब यह सब भांति कृतकृत्य हो, अपने विषय की प्रकाण्ड पण्डिता हो, सारे विश्व की आधुनिकतम लभ्यता, समाचार, राजनीति और अर्थशास्त्र का व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त कर भारत लौटी थी, जहां भारत सरकार ने उसकी योग्यता का आदर कर उसे तत्काल ही केन्द्र में एक उच्च पद प्रदान किया था । और अब वह अपनी दृष्टि से अपने ध्येय में कृतकृत्य हो छह मास की छुट्टी ले सोधी अपनी सम्वी से मिलने उसके घर पाई थी। माता- पिता से मिलना उसने पीछे के लिए छोड़ दिया था।

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