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घरती और आसमान २६३ कल्पना का एक कमाल किया था। उसने मूर्ति में उस चिर विश्राम को अप्राप्य अंकित किया था और उसकी गहरी आंतरिक भूख मूनि को पलकों में सजा दी थी। इस प्रतिकृति का नाम रखा उसने-'धरली और प्रासमान।' --
घरती और आसमान २६३ कल्पना का एक कमाल किया था। उसने मूर्ति में उस चिर विश्राम को अप्राप्य अंकित किया था और उसकी गहरी आंतरिक भूख मूनि को पलकों में सजा दी थी। इस प्रतिकृति का नाम रखा उसने-'धरली और प्रासमान।' --