पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/३१३

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३ युगलांगुलीय कहा-पोहो ! बातों ही बातों में कितना वक्त बीत गया, पता ही न चला ! जरा उठू, मुन्नी अब सोकर उठने ही वाली है, उसके लिए दूध गर्म कर दूं। और उनके भी पाने का समय हो रहा है, चाय का डौल करूं। अब मैं तुझे आलू के चोप खिलाऊंगी। देख कैसे लगते हैं। अच्छे लगें तो एक अच्छा सा सर्टिफिकेट देना। 'क्या करेगी सर्टिफिकेट ?' 'शीशे में लगाकर घर में लटकाऊंगी। लोग देखेंगे और मेरी इस विद्या को प्रामाणिकता की दाद देंगे।' 'अच्छी बात है, सर्टिफिकेट दूंगो । पर सिर्फ खाकर ही नहीं, मुझे भी चोप बनाना सिखा । पहले अंगीठी जलाने से शुरू करूं ।' 'अव गिलहरी रंग लाई ! तो ऐसी जल्दी क्या है, सगाई तो पक्की कर । खाने और सराहना करने वाला भा जाए तब बनाना भी सीख लेना।' श्रद्धा ने प्रेम भरे नेत्रो से रेखा को देखा और रेखा श्रद्धा से लिपट गई। 17