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पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/३१२

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३०२ भाव कहानिया - , ? उनकी बुद्धि को कुठित कर देता है। पर हम स्त्रियों ने तो अपनी शिक्षा को अपना आभूषण बना लिया है। वह हमारा शृंगार है। उसमें हम संयम और नत्रता का समावेश करके अपने कर्तव्य में जोड़ देती है। इसीसे जहा पुरुष घमण्ड में तना हुआ सब जगह प्रभुत्व चाहता है, वहां हम प्रेम और आत्मीयता के सम्बन्ध स्थापित करती हैं।' 'नर-नारी का यह भेद क्या स्त्री-चरित्र की स्वाभाविक कोमलता के कारण है ?' 'नहीं वहिन, स्त्री-चरित्र में जो एक प्राकृत सुबुद्धि और सद्विवेचना तथा चरित्र की उच्चता है, वही उसका कारण है।' 'तो तू यह कहना चाहती है कि भारतीय समाज में स्त्री ही की प्रधानता हे 'नहीं तो क्या, अरी रेखा ! ये पुरुप तो मुरचा लगा हुअा रुपया है। वह हमारी ही साख पर चलता है।' 'यहा तक !' रेखा खिलखिलाकर हंस पड़ी। श्रद्धा ने और भी गम्भीर होकर कहा-हंसने की बात नही बहिन, सच्ची बात है। देख, हम लोग दिन-रात बास मे लगी रहती है। इसीसे हम शिक्षा के व्यवहार-दर्शन को सरलता से हृदयगम कर लेती है और उसे अपने जीवन का अंग बना लेती हैं। हमारा चरित्रबल' इसमें हमारी सहायता करता है। शिक्षा से चरित्र का यह मेल सोने में सुहागा । पुरुषो में यह है ही नहीं। इसीसे तुम देखती हो कि हमारे देश में शिक्षिता स्त्रियों के अनुरूप शिक्षित पुरुष मिलने ही दूभर हैं। यदि वे अपने बाह्य प्राडम्बरों को घटा दें, हमारी तरह गवरहित हों, विनम्र-भाव से काम में लग जाएं, चरित्र का विकास करें, विश्वास का अांचल पकड़ें तो आज जो स्त्री-पुरुष के अधिकारो का तुमुल संग्राम छिड़ा है, सहज ही में बन्द हो जाए। एक-दूसरे को प्रात्मार्पण कर दे ; दोनों पृथक् व्यक्ति न रहकर एक इकाई हो जाएं। 'तो वहिन, तू ऐसा कर कि इस पालित पशु के गले में अपने गले की चम- कती सोने की ज़ंजीर डाल और उसके लम्बे-लम्बे कान पकड़कर कह कि---बुद्ध मियां, भोजन खाने के लिए है, मुंह पर लपेटने के लिए नहीं । इसी प्रकार शिक्षा मन को उन्नत करने के लिए है, कोट-पतलून की जेबों में भरने के लिए नहीं ।' 'मैं तो अपने हिस्से का काम कर चुकी रेखा, अब तेरी बारी है । जरा अच्छे से किसी लम्बे कान वाले को पकड़कर “समझी कि नहीं ? दोनों सखियां खिलखिलाकर हंस पडीं। श्रद्धा ने घडी पर दृष्टि डालकर