पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/३२०

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पीर नाबालिग ३०६ सब दोस्त एकबारगी हो बरम पड़े। बोले--अन्धेर नहीं तो क्या ? सोलह आना अन्धेर ! फिर हम लोगों के रहते ? मुझे हंसी आ रही थी, परन्तु मैंने उसे रोककर अत्यन्त गम्भीर स्वर में कहा-तब तो अन्धेर को रोकना होगा ! मगर मामला क्या है वह भी तो कुछ 4 सुन? पीर नाबालिग ने हाथ की बीड़ी फेंक दी, और जरा तेज स्वर में कहा- सुनना चाहते है तो सुनिए ! भला बताइए तो जयप्रकाश बाबू को किस बहा- दुरी के सिलसिले में इतना रुपया मिल रहा है ? मैंने धीरे से कहा-~~ -उसकी बहादुरी और देशभक्ति तो भारत का बच्चा- बच्चा जानता है ! उन्होंने कितना त्याग किया, कष्ट सहे ! और अब देश की आजादी के लिए कितना भगीरथ प्रयत्ल कर रहे हैं ! 'तब आपको असल बात का पता ही नहीं है।' मैंने बिना हुज्जत यह बात स्वीकार कर ली। कहा-~-श्राप ठीक कहते हैं, असल बात का मुझे राचमुच कुछ पता नही है ! कुछ बताइए न भेद की वात । दोस्तों ने भी ललकारा–बस भई, अब तुम सब कुछ कह डालो, घोड़े की लात की बात भी न छिपात्रो। मैंने कहा-धोडे की लात की क्या बात है? पीर नाबालिग एक मिनट खामोश रहे, फिर कहा-देखिए, ये लीडर लोग सब सिर्फ जबांदराजी करते है ! काम कोई और ही करते हैं। बयालिस के अगस्त-आन्दोलन ही को ले लीजिए। क्या आप जानते है कि कचहरी से यूनि- वसिटी तक के तार और खम्भे किसने तोड़े थे ? कचहरी पर कलक्टर की नाक पर पैर रखकर तिरंगा झण्डा किसने फहराया था ? मैंने नम्रता से कहा- नहीं, ये सब भारी-भारी बातें मुझे नहीं मालूम है । आप उस वीर पुरुष का नाम बताइए तो। पीर नाबालिग क्षण-भर चुपचाप सिर नीचा किए बैठे रहे। फिर एक दोस्त की तरफ मुंह करके बोले-~-अब हम क्या कहें, तुम बता दो न वीरबन, सब कुछ तो तुमने देखा था, अब कहते क्यों नहीं ? बीरबल ने बाअदब कहा-आप ही कहिए, अापके मुंह से वे सब कारनामे हम गंगा की पवित्र गोद में बैठकर सुनने का सौभाग्य प्राप्त करना चाहते हैं ।