पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/३२६

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तिकडम रामनाथ ने फिर एक सांस ली और कहना शुरू किया-कोई दस बजे का समय था। बाजे वज रहे थे, दूल्हा-दुल्हिन पलंग पर बैटे थे, औरतों ने उन्हें घेर रखा था। कोई गा रही थी, कोई बकवाद कर रही थी। एक चकल्लस मची हुई थी। इतने में एक बाला पर मेरी बदनसीब नजर पड गई ! 'बाह दोस्त, हमने क्या कहा था, एक वोल उठा । दोस्तों ने कहा-जरूर वह सैकड़ों में एक होगी, फिर आपने कोई तीर-ऊर फेंका ? 'सैकड़ों में ? म्यां, लाखों में !' रामनाथ दे जोश में लाकर कहा। फिर कुर्ते की आस्तीने चढ़ाई और सिगरेट निकालकर जलाई । दोस्त लोग दम रोके बैठे थे। रामनाथ बोले- बस मैं देखता ही रह गया! वह आंख, वह नाक, वह रग, वह कद कि क्या कहूं, किससे कहूं, कैसे कहूं, क्योकर कहूं, तुम सब गधे हो ! समझोगे क्या एक ने कहा-ठीक कहते हो भई ! हम गधे इन बातों को समझ ही नहीं सकते। लेकिन यार, झटपट यह कह दो : कुछ इशारा किया, शेर पढे, बातें की, पुर्जा लिखा, किसी तरह अपने दिल का हाल-चाल भी उसे बताया, उसके दिल की भी जानी? 'कहता तो हूं, तुम सब गधे हो ! तुम होते तो यहीं करते और चांद पिटाते। मैंने तिकड़म से काम लिया, तिकड़म से !' 'भई वाह, जरा हम सुनें वह तिकड़म !' सब दोस्त हंसी रोककर बैठ गए। रामनाथ ने एक कश सिगरेट का खींचा और कहा-यह तो मैं कह हो चुका हू कि वह बड़ी ही खूबसूरत थी, उम्र १६-१७ साल की थी। वह वास्तव में मेरे दोस्त की साली थी और अभी क्वांरी थी। एक दोस्त बीच ही में चिल्ला उठे, बोले--अरे यार, यह कहो, थी ही या अभी है ? है तो फिर दोस्त के बन जानो साढ, और यारों को चलने दो वारात में ! लो दोस्तो, होनी श्रापको भी औरंगाबाद खींचने वाली है ! सब दोस्तों ने उसे रोककर कहा-चुप रहो भाई ! वकवाद न करो। जरा सुनने तो दो । हां जी, उस तिकड़म की बात कहो अब ! 'वही तो कह रहा हूं। उस वक्त तो मैं जिगर पर तीर खाकर चला आया। घर आकर मैंने घर वाली का गाजियाबाद रहने का बन्दोबस्त कर दिया। पूछा तो कह दिया कि दिल्ली की आबो-हवा खराब है। मकानों के किराए ज्यादा