पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/३२७

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कौतुक कहानियां हैं, चीजे महंगी है। नौकरों की किल्लत है, गरज हर तरह उसका दिल रख दिया। मगर दिल्ली भी मकान कायम रखा । दस्तर में भी पाशर गाजियाबाद चला पाता । कभी-कभी दिल्ली रह जाना । दिल्ली में पटोमियो और दोस्तों से कह दिया कि घर बाली बहुत बीमार है। परेशान हुँ। दादरों ने 'प्रादो-हवा बदलने को कहा है । कुछ दिन यह धन्या वना। और एक दिन वह मर गई !' मित्रगण एकदम चौक पड़े-- -~~-या मर गई ? मगर वीमारी तो महज़ बहाना ही था; फिर... रामनाथ ने एक कश खीचकर धुंए के बादल बनार, फिर धीरे से कहा-~- मतलब यह कि यहा दिल्ली में मशहूर कर दिया गया कि मर गई। बाकायदा क्रिया-कर्म हुए, तेरह ब्राह्मण आए और रखा गए, पिताजी पाए और रोपौट गए। उसके भाई, बाप, मां भी सब दस्तूर कर गए । यारों की समझ में नहीं पा रहा था कि हमें या रो; यह सच कह रहा है या गप उड़ा रहा है ? वे अांखें फाड़-फाड़कर रामनाथ की ओर देख रहे थे। और रामनाथ कह रहा था. इस काम से निपटकर अब व्याह की बाल चली। मैंने साफ इन्कार कर दिया। दिन में तीन-चार बार प्याज का टुकड़ा अांख में लगा लेता था, मासु खूब बहते थे; आँखें सूजी रहनी थीं । खाना रात को खाता था, दिन में सिर्फ बटाई पर पड़ा रहता था। बलदेव से पूछिए न, यह तो रोज ही पाता था। बेवकूफ; यह भी मेरे साथ रोता था । बाजार से मिठाई ला- लाकर खिलाना चाहता, सिनेमा ले जाना चाहता, मार मैं था कि चटाई से उठना हराम समझता था। बलदेव ने कहा-मनिषा यादव (वार्ता)अरे. जालिम ! तो यह सब मेरा एक्टिग था? यार, फिर तो किसी फिल्म में जाकर अभिनेता बनो। बली की कलम घिसने में क्या धरा है ! मगर यार, गजव का एक्टिग था । 'एक्टिग नहीं था, वह तिकड़म थी !' 'रामनाथ ने गम्भीरता से कहा। मारों ने कहा-~-वह भी तो सुनायो; तिकड़म क्या श्री ? 'शादी की चर्चा चलती ही रही। पिताजी सिर खा रहे थे। मैं न-न कर रहा था। मगर मैने पिताजी से दोस्त की साली की ओर इशारा कर दिया था। यह बैठे हैं हजरत रघुनाथ, कहते क्यों नहीं ? पिताजी से खूब