पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/३३५

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३२४ कौतुक कहानियां सम्बन्ध रखती है। मित्र-गण चौकन्ने हो गए । मिस्टर चक्रवर्ती बोरठ-क्या मैं इस घटना का वर्णन सुन सकता हूं? डानटर ने उदास होकर कहा-जाने दीजिए मिस्टर चलावी, उग दारुण घटना को भूल जाना ही अच्छा है, खासकर जब इसका सम्बन्ध मेरी म परम प्यारी घड़ी से है। परन्तु मिस्टर चक्रवर्ती नहीं माने, उन्होंने कहा- यह तो अत्यन्त कौतूहल की वाल मालूम होती है । यदि कष्ट न हो तो कृपा कर अवश्य सुनाइए । यह जरूर कोई असाधारण घटना रही होगी, तभी उसने पाप ऐसे विचलिए हो गए है। 'असाधारण तो है ही !' कहकर कुछ देर डाक्टर नुप रहे फिर उन्होंने एक- एक करके प्रत्येक मित्र के मुख भर दृष्टि डाली । सब कोई सन्नाटा बाधे डाक्टर के मुंह की ओर देख रहे थे। सबके मुग पर ने उनका ष्टि हटकर पड़ी पर अटक गई। वे बड़ी देर तक एकटक बड़ी को देखते रहे, पिर एक ठण्डी सांस लेकर बोले-~-आपका ऐसा ही भाग्रह है, तो मुनिए ! धीरे-धीरे डाक्टर ने कहना शुरू किया-चौदह साल पुरानी बात है। सूबेदार कर्नल ठाकुर शार्दूलसिंह मेरे बड़े मुरब्बी और पुराने दोस्त थे । वे महा- राज के रिश्तेदारों में होते थे। उनका रियासत में बड़ा नाम और दरवार में प्रतिष्ठा थी। उनकी अपनी एक अच्छी जागीर भी थी। वह देखिए, सामने जो लाल हवेली चमक रही है, वह उन्हीकी है। बड़े बट और रुप्राब के श्रादभी थे, अपने ठाकुरपने का उन्हे बडा घमण्ड था। उनके बाप-दादों ने मराठों की लड़ाई मे कैसी-कैसी वीरता दिखाई थी-वे सब बड़ी दिलचस्पी से सुनाया करते थे। के बहुत कम लोगों से मिलते थे, सिर्फ मुझीपर उनकी भारी कृपादष्टि थी। जव' भी वे अवकाश पाते, प्रा बैटते थे। बहुधा शिकार को माय ले जाते थे। और हफ्ते में एक बार तो विना उनके यहां भोजन किए जान छूटती ही न थी। उनके परिवार में मैं ही इलाज किया करता था। मैं तो मित्रता का नाता निबा- हना चाहता था और उनसे कुछ नहीं लेना चाहता था, पर दे बिना दिए कभी न रहते थे। वे हमेशा मुझे अपनी औकात और मेरे मिहनताने से अधिक देते