पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/३३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

डाक्टर साहब की घडी सुपर इतन दिन मेरे पास रहकर तून प्रभा यह नहीं सीखा कि बड़े श्रादमी का अदब कस किया जा सकता है, क्या दुनिया में मेरे ही पास घड़ी है ? सूबेदार साहब पास वैसी पच्चीस घड़ी हो सकती है।' नौकर गाली और मार खाकर चुपचाप मेरा मुंह ताकता रहा । मेरा यह व्यवहार उसके लिए सर्वथा अतकित था। वह एक शब्द भी नहीं वोला । इसके बाद मैं सूबेदार साहब के पास गया। उनका चेहरा सफेद, मुर्दे के समान हो रहा था । वे मांखें फाड़-फाड़कर मेरी और ताक रहे थे । मैंने नम्रता से उनसे कहा- 'सूवेदार साहब, मेरे नौकर ने जो आपके साथ वेनदवी की है वह उसका कमूर नहीं है, मेरा है; परन्तु पुराने ताल्लुकात और उन कृपाओं का ख्याल करके, जो आपने हमेशा मेरे ऊपर की हैं, मैं आपसे क्षमा की आशा करता हूं। यह कहकर मैंने घड़ी उनके हाथ पर रख दी । सूबेदार साहब ने चुपचाप घड़ी ले ली। और वे यन्त्रचालित से उठकर चुप- चाप ही अपने घर को चल दिए । मैं द्वार तक उनके पीछे दौड़ा, परन्तु उन्होने फिर मेरी ओर अांख उठाकर भी नहीं देखा। मेरा मन कैसा कुछ हो गया था, कह नहीं सकना । परन्तु मुझे महल अनन्य जाना था और पांच बजले में अब देर नहीं थी। मैंने झटपट कपड़े पहनें और घर से निकला। अभी मैंने गाड़ी में पैर ही किया था कि सूबेदार साल का आदमी हांफता हुआ वदवास-सा आया। उसने कहा-जल्दी चलिए डाक्टर साहब, सूबेदार साहब ने जहर खा लिया है और हालत बहुत खराब है ! मैं घबराकर सीधा उनके घर पहुंचा। एक कोहराम मचा था । भीड़ को पार करके मैं सूबेदार साहब के पलंग के पास गया ! अभी वे होश में थे। मुझे देखकर टूटते स्वर में उन्होंने कहा-~-घड़ी मैंने आपकी चुराई थी डाक्टर साहब, परन्तु जीवन-भर में जो कुछ मैंने आपकी भलाई की थी मेरी इपजत बचाकर उसका पूरा बदला अाफ्ने चुका दिया। लीजिए मेरे हाथ से अपनी घडी ले जाइए। अब मैं जिन्दा नहीं रह सकता है परन्तु आप इस चोर सूबेदार को भूलिएगा नहीं और उसे माफ कर देने की कोशिश कीजिएगा। सूबेदार साहब की आंखें उल्टी-सीधी होने लगी। अब वास्तव में कुछ भी नहीं हो सकता था। मैंने चुपके से धड़ी जेब में डाल ली, और सबकी नजर