३० | बौद्ध कहानियां |
प्रतिहार ने नत-मस्तक हो प्रस्थान किया। महाराज ने चंवरवाहिनी को संकेत से निकट बुलाकर कहा--जा, राजमहिषी से कह दे कि आज ही तो भाण्ड- वितरण का दिन है, सभी राजकुमारियां आ गई होंगी। वे स्वय उनकी सुधूषा करें। ऐसा न हो कि किसीको खिन्न होने का अवसर मिले।
महानायक प्रबुद्धसेन ने अलिन्द में आ स्थिर भाव से सम्मुख खड़े होकर और खड्ग को उष्णीष से लगाकर पुकारा--परम परमेश्वर, परम वैष्णव...
महाराज ने बीच में ही हंसकर कहा--महानायक, आज सभी सेना सज्जित करनी चाहिए। ज्यों ही कुमार सिद्धार्थ अन्तिम भाण्ड वितरण करें, त्यों ही जयघोष और सैनिक अभिवादन होना चाहिए । अाज ही कुमार सिद्धार्थ सेना को पताका प्रदान करेंगे।
महानायक ने नत-मस्तक होकर कहा--महाराज की जय हो । समस्त सेना सज्जित होकर भट्टारकपादीय महाराजकुमार के अन्तिम भाण्ड-वितरण की प्रतीक्षा कर रही है।
महामात्य विजयादित्य ने आ, नत-जानु होकर महाराज का अभिवादन किया । महाराज ने प्रफुल्ल-वदन होकर कहा~-महामात्य ! अब तो समय उप- स्थित है, फिर विलम्ब क्यों ? सभी राजकुमारियां या तो गई ? तुम कुमार सिद्धार्थ को तृतीय अलिन्द में ले जाओ, वहीं भाण्ड-वितरण किया जाएगा। हां, तुम कुमार के सर्वथा निकट रहना और उनकी गतिविधि का सूक्ष्म निरीक्षण करते रहना । नेत्रों का तारतम्य और पोष्ठ-प्रस्फुरण, गूढ़ मनोगत भावों को प्रदर्शित कर देगा। ज्यों ही तुम देखो, कुमार किती कन्या के प्रति आकर्षित हुए है, त्यों ही तुम शङ्क-ध्वनि करना, और पुरोहित को शुभ-संवाद देकर मेरे निकट भेज देना । इतना कहकर महाराज हंस दिए।
वृद्ध महामात्य भी हंसे। उन्होंने कहा--जो आज्ञा, परन्तु कोली राजकन्या यशोधरा अभी तक नहीं आई हैं। वह
बीच में ही एक दण्डधर ने उपस्थित हो, उच्च स्वर से जयनाद करके कहा--कोली राजकन्या भट्टारकपादीय महाराजकुमार से भाण्ड-प्रसाद पाने की अभिलाषा से आई हैं । वे द्वार पर उपस्थित हैं।
महाराज ने हठात् खड़े होकर कहा--जाओ जानो, राजमहिषी से कहो कि वे राजनन्दिनी का यथेष्ट स्वागत करें।