प्रबुद्ध 1 एवं अाज का 'मैं' कल के 'मैं' में फिर जन्म लेगा, उसी प्रकार पूर्व-जन्मों का अनादि प्रवाह चल रहा है।' 'हे मुनि ! तुम अभी मूर्ख हो ।' हे विद्वानो ! तुम अभी मनन करो।' कुमार सिद्धार्थ वहां से चल दिए। उस बिल्व-वन में पांच लपस्वी कठोर तप कर रहे थे । मुनि निद्धार्थ ने भी तप करना शुरू किया। छह वर्ष के कठोर तप से उनका शरीर सूखकर लकड़ी के समान हो गया, वे मृतप्राय हो रहे थे, परन्तु उन्होंने सोचा-खेद है कि इन उपवासों और व्रतों से मुझे कुछ भी शान्ति नहीं मिली। यह सब मिथ्या है। वे उठे, उन्होंने स्नान किया, परन्तु दुर्वलता के कारण गिर पड़े। गोप-कन्या नन्दा ने दया कर उन्हें खीर दी, जिससे उनके शरीर में बल का संचय हुआ । वे तपश्चर्या छोड़कर धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगे। अन्तत: वहां से भी चल दिए। बोधि-वृक्ष निकट आ गया। मुनि ने उसे देखा । पृथ्वी कम्पायमान होने लगी । जगत् में प्रकाश छा गया । मार-जो विषयों का पोषक, और मृत्यु का प्रेरक है, तथा सत्य का शत्रु है---आया । उसकी तीनों लुभावनी पुत्रियां अपनी राक्षसी सेना के साथ थी। सम्मुख पाए मार ने भयानक गर्जना की । मुनि बोधि-वृक्ष के नीचे शान्त बैठे रहे । उसकी तीनों पुत्रियों ने उनपर वाण फेके। पर प्रबल जितेन्द्रिय के हृदय में कोई तामसी इच्छा न उत्पन्न हुई। तब समस्त दुष्ट पात्माओं ने उनपर एकसाथ आक्रमण किया, पर नारकीय ज्वालाएं सुग- धित पवन के झोंकों में परिवर्तित हो गई, वज्रपात ने कमल पुष्प का रूप धारण कर लिया। मार पराजित होकर भागा। एक अलौकिक तेज दिशाओं में व्याप्त हो गया। मुनि सिद्धार्थ ध्यान-मग्न थे। वे संसार की विपत्तियों, कष्टों और दुष्कर्मों के बुरे परिणामों को प्रत्यक्ष देख रहे थे। वे सोच रहे थे--संसार की यह कैसी विचित्र गति है ? वे एकाएक बोल उठे-~~-धर्म सत्य है, धर्म ही मनुष्य को अज्ञान, पाप और दुःखों से बचाता है। जीवन-विकास की बारह कड़ियां हैं, जिन्हें द्वादश निदान कहते हैं । सत्यचतुष्टय ये हैं--(१) दुःख, (२) दुःख का कारण, (३) दुःखों की समाप्ति, (४) अष्टांग मार्ग (जिनपर चलने से दुःखों का नाश होगा)। मुनि सिद्धार्थ इस सिद्धान्त को प्राप्त करके बुद्ध हो गए। वे बोले-
पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/४९
दिखावट