पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/७५

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७२ मुगल कहानिया ने चाभी निकाल दरवाजा खोला, और कैदी को भीतर ढकेल दिया। कोठरी की गच कैदी का बोझ ऊपर पड़ते ही कांपती हुई नीचे वसकने लगी ! प्रभात हुश्रा । सलीमा की बेहोशी दूर हुई। चौंककर उठ बैठी। वाल संवारे, ओढ़नी, ठीक की, और चोली के बटन' कसने को आईने के सामने जा खड़ी हुई। खिड़कियां बन्द थी। सलीमा ने पुकारासाकी ! प्यारी साकी ! वड़ी गर्मी है, ज़रा, खिड़की तो खोल दे। निगोड़ी नींद ने तो अाज गजब ढा दिया। शराब कुछ तेज़ थी। किसीने सलीमा की वात न सुनी। सलीमा ने जरा जोर से पुकारा- साकी! जवाव न पाकर सलीमा हैरान हुई । वह खुद खिड़की खोलने लगी। मगर खिड़कियां बाहर से बन्द थीं। सलीमा ने विस्मय से मन ही मन कहा-क्या बात है ? लोडियां सव क्या हुई ? वह द्वार की तरफ चली। देखा, एक तातारी बांदी नंगी तलवार लिए पहरे पर मुस्तैद खड़ी है । बेगम को देखते ही उसने सिर झुका लिया । सलीमा ने क्रोध से कहा- तुम लोग यहां क्यों हो ? 'बादशाह के हुक्म से।' 'क्या वादशाह आ गए ?' 'जी हां। 'मुझे इत्तिला क्यों नहीं की ?' 'हुक्म नहीं था ।' 'बादशाह कहां हैं ?' 'जीनतमहल के दौलतखाने में ।' सलीमा के मन में अभिमान हुआ। उसने कहा- ठीक है, खूबसूरती की हाट में जिनका कारबार है, वे मुहब्बत को क्या समझेगे? तो अब जीनतमहल की किस्मत खुली? तातारी स्त्री चुपचाप खड़ी रही। सलीमा फिर बोली-मेरी साकी कहां 'कैद में।'