पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/७९

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मुगल कहानिया दिखाने-लायक कहां रही ? अव तो मरना ही ठीक है। अफसोस ! मैं किसी गरीव किमान की औरत क्यों न हुई ! धीरे-धीरे स्त्रीत्व का तेज उसकी प्रात्मा में उदय हुआ । गर्व और दृढ़ प्रतिज्ञा के चिह्न उसके नेत्रों मे छा गए। वह सांपिन की तरह चपेट खाकर उठ खडी हुई। उसने एक और खत लिखा-- 'दुनिया के मालिक ! आपकी वीवी और कनीज होने की वजह से मैं आपके हुक्म को मानकर मरती हूं। इतनी बेइज्जती पाकर एक मलिका का मरना ही मुनासिब भी है। मगर इतने बड़े बादशाह को औरतों को इस कदर नाचीज़ तो न समझना चाहिए कि एक अदना-सी वेवकूफी की इतनी कड़ी सज़ा दी जाए। मेरा कुसूर सिर्फ इतना ही था कि मै वेखबर सो गई थी। खैर, सिर्फ एक बार हुजूर को देखने की ख्वाहिश लेकर मरती हूं। मैं उस पाक परवरदिगार के पास जाकर अर्ज करूंगी कि वह मेरे शौहर को सलामत रक्खे । --सलीमा खत को इत्र से सुवासित करके ताजे फूलों के एक गुलदस्ते में इस तरह रख दिया कि जिससे किसीकी उसपर फौरन ही नजर पड़ जाय । इसके बाद उसने जवाहरात की पेटी से एक बहुमूल्य अंगूठी निकाली, और कुछ देर तक प्रांखें गडा- गडाकर उसे देखती रही। फिर उसे चाट गई ! वादशाह शाम की हवाखोरी को नज़र-वाग में टहल रहे थे। दो-तीन खोजे घबराए हुए आए, और चिट्ठी पेश करके अर्ज की-हुजूर, गजव हो गया ! सलीमा वीबी ने जहर खा लिया है, और वह मर रही है ! क्षण भर में बादशाह ने खत पढ़ लिया। झपटे हुए सलीमा के महल पहुंचे। प्यारी दुलहिन सलीमा जमीन में पड़ी है। आंखें ललाट पर चढ़ गई हैं। रग कोयले के समान हो गया है। बादशाह से न रहा गया। उन्होंने घबराकर कहा- हकीम, हकीम को बुलाओ! कई प्रादमी दौड़े। बादशाह का शब्द सुनकर सलीमा ने उनकी तरफ देखा, और धीमे स्वर में कहा-जहे-किस्मत ! वादशाह ने नज़दीक बैठकर कहा-सलीमा ! बादशाह की वेगम होकर क्या तुम्हें यही लाज़िम था ?