पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/९७

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भाटका वचन यह एक आदर्श ऐतिहासिक रोमांचकारी गाथा है, जो गुजरात के प्रसिद्ध सोलंकी राजा कुमारपाल से सम्बन्धित है। इसमें भी सामन्तशाही का एक पहलू दिखाया गया है । यह एक भाट के ओजपूर्ण उत्सर्ग की कहानी है । इस बात को प्राज ८०० वर्ष बीत गए । उन दिनों गुजरात पर सोलकी राजा कुमारपाल राज्य कर रहा था। सोलंकियों ने लगभग ३०० वर्ष गुजरात पर राज्य किया। उनका राज्यकाल गुजरात के इतिहास में स्वर्णयुग कहाता था। सिद्धराज जयसिंह के मरने पर पचास वर्ष से भी बड़ी आयु में कुमारपाल गुजरात की गद्दी पर बैठा ! सिद्धराज महाप्रतापी राजा था पर वह अपुत्र मरा। कुमारपाल उसके खानदानी भाई का पोता था। सिद्धराज उससे प्रसन्न न था, अपने राज्यकाल में उसने जब यह सुना कि कुमारपाल ही उसका उत्तराधिकारी होगा तो उसने चिढ़कर कुमारपाल को जान से ,सरवा डालने के बड़े-बड़े प्रयत्न किए और कुमारपाल बहुत दिन तक छद्मवेश में देश-विदेश में ठोकरें खाता फिरा। कुमारपाल ही गुजरात का राजा होगा, इस बात की भविष्यवाणी एक जैन यति हेमचन्द्र ने की थी। कुमारपाल ने राजा होकर हेमचन्द्र को अपना गुरु बना लिया और उसके इतना अधीन हुआ कि लोग उसे जैनी कहने लगे। यो सोलंकी राजाओं के इष्टदेव भगवान् सोमनाथ थे ! वे परम माहेश्वर कहाते थे। कुमारपाल का शैवों पर यद्यपि उदारभाव रहा--परन्तु जैन धर्म पर उसकी ऐसी नास्था बढ़ी कि राज्य के नियमों की भी परवा न कर उसने जैनों के साथ भारी-भारी रियायतें कर डालीं। उसने जैन श्रावकों का करोड़ों रुपयों का आयकर माफ कर दिया। अनेक जैन उपाश्रय बनवाए। जैन धर्मों की अनेक दृत्तियां नियत की। जैन यतियों का भरे दरबार में स्वागत होने लगा। अनेक जैन मंदिरों की उसने स्थापना की। हेमचन्द्र बड़े भारी पंडित थे। वे तान्त्रिक और यन्त्र शास्त्री भी थे। उन्हें कलिकाल-सर्वज्ञ कहा जाता है। उन्होंने अनेक ग्रन्थ लिखे। उनके प्रभाव से